मनोज ऑटो वाला और मंदी

उसे अपना ऑटो बाजार के नुक्कड़ पर, मौके की जगह लगाना था। खाली जगह पर आड़े-तिरछे पार्क की गयी मेरी साइकिल उस जगह पर पहले से थी। उसने मेरी साइकिल आगे बढ़ा कर तरतीब से फुटपाथ के समांतर खड़ी कर दी। यह करते हुये वह मेरी ओर देखता भी जा रहा था कि मैं कोई प्रतिक्रिया या प्रतिवाद तो नहीं करूंगा।

मैंने वैसा नहीं किया, उसके उलट मैंने उससे बातचीत प्रारम्भ कर दी।

चार आदमी बिठाने की क्षमता वाले ऑटो में यहां से वह दस सवारियां बिठाता है। एक सवारी का बीस रुपया किराया। महराज गंज के इस नुक्कड़ से कछवाँ बाजार तक पंहुचाता है। दिन भर के चार राउण्ड ट्रिप।

मैं तुरंत आकलन करने लगता हूं। दो सौ रुपये एक तरफ के हिसाब से आठ ट्रिप। दिन भर में 1600 सौ रुपये बने। उसमें से हजार के आसपास की कमाई हो ही जाती होगी। महीने की पच्चीस-तीस हजार की आमदनी। इस इलाके की सामान्य मजूरी के हिसाब से शानदार!

पर वह बताता है – ऐसा है नहीं। मंदी है। एक ओर से दस सवारी मिल गयीं तो दूसरी ओर से चार पांच ही मिलती हैं। कभी कभी खाली भी लौटना होता है। उसने मंदी शब्द को एक बार और रिपीट किया।

आजकल मंदी शब्द का बहुत प्रयोग हो रहा है। बिजनेस चैनलों से ले कर आम बातचीत में। बाजार में सामान अंटा पड़ा है। लोग खूब निकल रहे हैं खरीददारी के लिये। तो मुझे लगा कि वह, नाम मनोज, शायद मंदी शब्द का (दुर)उपयोग कर अपनी गरीबी या निरीहता अण्डरलाइन करना चाहता है। पर वैसा था नहीं!

मनोज – चार आदमी बिठाने की क्षमता वाले ऑटो में यहां से वह दस सवारियां बिठाता है। एक सवारी का बीस रुपया किराया। महराज गंज के इस नुक्कड़ से कछवाँ बाजार तक पंहुचाता है।

मनोज ने बताया कि यहीं दो किमी दूर गांव में रहता है वह। उसका पांच लोगों का परिवार है – तीन बच्चे और पति पत्नी। उसके अलावा घर में माता पिता और एक बहन भी है। आमदनी का एक ही जरीया है – यह ऑटो। और इस पुराने मॉडल के ऑटो में सवारियां बैठना कम पसंद करती हैं। बिजली वाले, सीएनजी वाले नये ऑटो ज्यादा आकर्षित करते हैं उन्हें। नया ऑटो लेने का मतलब तीन लाख का खर्चा। वह नहीं कर सकता मनोज।

और बकौल मनोज, मंदी तो है। सवारियां उतनी नहीं मिलतीं, जितनी मिला करती थीं।

मैं उसके चित्र लेता हूं। उससे परमीशन ले कर। वह मेरी बातचीत से थोड़ा असहज है। ऐसी बातचीत लोग अमूमन करते नहीं। उसके अलावा, चित्र लेने की बात सुन कर वह और असहज लगता है, पर मुझे मना नहीं करता।

मैं उसकी पच्चीस हजार की महीने की, बिना इनकम टेक्स की आमदनी और घर में परिवार के दो तीन और लोगों द्वारा किये जाने वाले काम धाम की सोच कर उसकी सम्पन्नता और उसके मध्यवर्ग में होने की कल्पना कर रहा था। पर वैसा निकला नहीं। आठ लोगों का परिवार अगर उसपर निर्भर है तो वह मजदूर वर्ग के ब्रेकेट में ही ठहरता है। शायद मैं सरकार की तरह सोच रहा था। आमदनी; कामधाम की प्रचुरता की खुशफहमी और उसकी मोहक कथायें बांटने का काम सरकार का है। पर मनोज जैसे लोग जद्दोजहद और अनिश्चितता की दूसरी कहानी बताते हैं।

सही कहानी मेरे आकलन और मनोज के बयान के बीच कहीं होगी। … भारत की रीयल स्टोरी क्या है? मंदी है क्या? वह बाजार में है, सामान से अंटी पड़ी दुकानों में है, मीडिया की लफ्फाजी में है या वास्तव में वैसी ही है, जैसा मनोज कह रहा था। … क्या एक आदमी की आमदनी पर आठ लोग पलते रहेंगे?

मुझे ज्यादा नहीं मालुम। और अपने आपकी अल्पज्ञता का अहसास मुझे बाजार से घर आते हुये होता रहा। मंदी है या नहीं है?

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

One thought on “मनोज ऑटो वाला और मंदी

  1. मधव कुमार, फेसबुक पेज पर –
    औसतन दिन के पांच से छह सौ तक कमाई होती है साधारण ऑटो वाले की सब काट छांट कर।
    महीने के दस बारह हजार।
    अन्य कोई काम करता हो तब दूसरी बात है।

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