फिर मिले शिव जग यादव

वहीं और उसी मुद्रा में फिर मिले शिव जग यादव। ‘अमर उजाला’ पढ़ रहे थे और ‘आज’ उनकी साइकिल के कैरियर पर रखा था। पहले की तरह वे दत्तचित्त थे और मेरी ओर देखा भी नहीं। मैंने अपनी साइकिल खड़ी कर अपने मोबाइल में उनपर लिखी पोस्ट दिखाई। सरसरी निगाह से उन्होने पोस्ट देखी। चित्र देखे और पूछा – एकर का होये?

“दुनियां पढ़ेगी। आप के बारे में जानेगी कि आदमी अखबार में इतनी रुचि लेता है।”

अखबार पढ़ने वाले शिव जग नहीं जानते इण्टरनेट और स्मार्टफोन की दुनियाँ। मुझसे कहा – “अच्छा, ई ह्वाट्सएप्प है।” मैं उन्हें बताने की कोशिश नहीं करता कि ब्लॉग, ट्विटर या फेसबुक क्या है तथा ब्लॉग और चैट में मूलभूत अंतर क्या है।

भारत आर्टीफीशियल इण्टेलिजेंस की दुनियां में छलांग लगा रहा है। आये दिन चैटजीपीटी के कारनामों की चर्चा होती है। पर अभी भी एक बड़ी आबादी जो अमर उजाला या दैनिक जागरण की मुरीद है, इन सबसे अछूती है या इन सब को जोड़ कर ह्वाट्सएप्प के खांचे में डाल देती है। शिव जग उसी बड़ी आबादी का हिस्सा हैं।

इतने में अखबार बेचने वाले मंगल प्रसाद अपने कमरे से बाहर निकल आये। शिव जग को देख कर बोले – “आपने खबर पढ़ी? अखिलेस पर डीएम ने गोली चलवा दी? धरना पर बैठे थे, डीएम को ठीक नहीं लगा।…”

शिव जग, जो अखबार चाटने वाले जीव हैं, भौंचक से दीखे। सपा के शीर्षस्थ नेता पर सरकार ने गोली चलाई? पर मंगल प्रसाद जी ने कोर्स करेक्शन किया – “अरे, समाजवादी वाले नहीं, कौनो और अखिलेस थे…।”

शिव जग को लग गया कि उन्हें खींचा जा रहा है। उन्होने अखबार समेटा और अपनी साइकिल पर रवाना हो गये। जाने के बाद मंगल प्रसाद ने बताया – “जितने भी अखबार पाते हैं, उन सब में हर खबर शिव जग पढ़ते हैं। उनके पिताजी भी उसी तरह के हैं। दोनो अखबार को पूरी तरह निचोड़ डालने वाले। और दोनो पक्के समाजवादी पार्टी के पक्षधर हैं। इतना ज्यादा कि लोग चुहुलबाजी भी करते हैं। कोई भी कह दे कि अखिलेश को पकड़ लिया या उनके साथ कुछ हो गया तो तुरंत वाद विवाद करने को तैयार हो जाते हैं।”

अर्थात मंगल प्रसाद ने “अखिलेश”, “गोली” और “सरकारी अफसर” का नाम ले कर काल्पनिक खबर इस ध्येय से दी थी कि शिव जग कुछ प्रतिक्रिया में उत्तेजित हो जायें। पर शिव जग शायद भांप गये और चले गये।

गांवदेहात में भाजपा-सपा की राजनैतिक मुद्दों पर नोकझोंक किसी धुर समर्थक को खींचने, चिढ़ाने और वादविवाद के मनोरंजन हेतु इस्तेमाल की जाती है।

वहीं और उसी मुद्रा में फिर मिले शिव जग यादव। अमर उजाला पढ़ रहे थे और आज उनकी साइकिल के कैरियर पर रखा था।

सही कहा है – सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठा! कौन नेता या पार्टी किसको कितना निहाल कर दे रही है? पर अलग अलग खांचे में बंटे लोग उन्ही को ले कर हलकान हैं! गांवदेहात के कोने में बैठा आदमी भी कितना राजनीति में आकंठ डूब चुका है। लोग खेमे में बंट गये हैं। लड़ मर रहे हैं।

और खेमेबंदी मनोविनोद का विषय भी बन गयी है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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