सुमित ने मुझे एक छोटी चौकी उपहार स्वरूप बना कर दी है। मेरे मन माफिक। उसका प्रयोग मैं बिस्तर पर बैठ लिखने-पढ़ने के लिये करता हूं।
व्यक्ति की जिस चीज में आसक्ति हो और कोई वह उपहार स्वरूप दे दे तो उस व्यक्ति को कभी भूलता नहीं वह।
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बढ़ती उम्र में धर्म का आधार
सही मायने में वानप्रस्थ का अनुभव तो मैने किया ही नहीं। अभी भी राजसिक वृत्ति पीछा नहीं छोड़ती। लोगों, विचारों और परिस्थितियों की सतत तुलना करने और एक को बेहतर, दूसरे को निकृष्ट मानने-देखने की आदत जीवन से माधुर्य चूस लेती है।
गठिया हो गया है मानसून को
उत्तरोत्तर मानसून का गठिया उसकी चाल को और ठस बना देगा। मेरी जिंदगी के दौरान ही उसकी हालत आईसीयू में भर्ती बूढे जैसी हो जायेगी। गठिया उसे इममोबाइल और अंतत: मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर का मरीज बना देगी।
