बिखारी समझते हैं मोदी सब समाधान निकालेंगे


चार कांटे फंसा कर सवेरे सात बजे से बैठे थे बिखारी द्वारिकापुर में गंगा नदी के किनारे। मैं उनसे मिला तो साढ़े दस बज चुके थे। एक बड़ी मछली उनकी पोटली में आ चुकी थी। अभी दोपहर दो बजे तक यहीं रहेंगे। बताया कि परिवार के खाने के लिये पकड़ रहे हैं। बड़ा परिवार है। करीब दो-ढाई किलो मछली चाहिये। यहां से ले कर जायेंगे तो शाम को बनेगी।

बिखारी

कसवारू गोंण की तरह ये भी बहुत दूर से आये हैं। बताया गांव है बरनी – सेवापुरी और चौखण्डी के बीच। गूगल नक्शे में देखा तो वह 30-34 किलोमीटर दूर दिखा। बिखारी ने भी बताया कि 15 कोस से आ रहे हैं वे। साठ किलोमीटर आना-जाना साइकिल से, वह भी मछली पकड़ने के लिये! गंगा किनारे यह मछलीमारों की प्रजाति मुझे आश्चर्यचकित करती है।

बिखारी सवेरे चार बजे निकले हैं अपने घर से। शाम पांच बजे वापस घर पंहुचेंगे। दिन भर केवल शाम की मछली के इन्तजाम में लगेगा। ऐसा वे महीने में तीन चार बार करते हैं – तब, जब कोई काम नहीं मिलता और समय रहता है। कल और आज उनके पास काम नहीं था। कल चारे (मछली के लिये केंचुये) का इन्तजाम किया और आज गंगा किनारे आ गये हैं। बिखारी ने बताया कि मेहनत-मजूरी का जो काम मिल जाये करते हैं। अधिकतर इमारत बनने की जगहों पर काम करते हैं।


नवंबर 10, 2017 के दिन फेसबुक नोट्स पर लिखी पोस्ट।



मैने पूछा – यहां बालू खनन का काम चला करता था, उसमें काम किया है या नहीं? बिखारी ने बताया कि बालू खनन का काम तो नहीं किया, पर मिलने पर वह भी कर सकते हैं।

कंटिया लगाये बिखारी

कुछ देर मैं गंगा किनारे उनके पास घास पर ही बैठ गया। दूब यहां हल्की गीली थी। आज कोहरा बहुत था, इस लिये देर से निकला था मैं और अब वातावरण में ठंडक नहीं थी। धूप थी, पर मरी मरी सी। वहां बैठने में कष्ट नहीं था।

कुछ देर मैं गंगा किनारे उनके पास घास पर ही बैठ गया।

बिखारी ने बताया कि घर में सभी मेहनत मजूरी करते हैं। सभी काम करते हैं, इसलिये खर्चा ठीक ठाक चल जाता है। बाकी, ब्याह शादी, मरनी करनी में खर्च तो हो ही जाता है। उम्र पचास के लगभग है बिखारी की। बुढ़ापे के लिये बचत कर एक बीमा की पालिसी में पैसा जमा किया था। जब पालिसी पूरी होने और पैसा मिलने का नम्बर आया तो पता चला कि कम्पनी गायब हो गयी है। जिस एजेण्ट ने भरवाया था पालिसी का कागज, वह कहता है पैसा मिलेगा, पर बिखारी को ज्यादा उम्मीद नहीं है। वह पैसा मिलता तो बैंक में जमा कर देते, पर अब समझ नहीं आता।

मैने पूछा – कोई सरकारी पेंशन योजना नहीं है, जिसमें हर महीना जमा कराओ और बुढापे में पेंशन मिले। जैसे मेरा काम पेंशन से चल रहा है, वैसा ही कुछ इन्तजाम तुम्हारा भी हो जाये।

बिखारी ने बताया कि वैसा तो कुछ नहीं है। पिछली समाजवादी सरकार ने एक पेंशन निकाली थी। पर उसमें बहुत कम पैसा मिलता था। अब तो वह बन्द हो गयी है। वैसे मोदी बनारस के हैं। उन्हे वोट दिया है। तेज दिमाग नेता हैं। सब समझते हैं। बिखारी को यकीन है कि मोदी जरूर कोई न कोई काम उस जैसे के भले के लिये करेंगे।

बिखारी से मैने जाति नहीं पूछी और राजनीति में उनके जातिगत अलाइनमेण्ट का अन्दाज भी नहीं लगाया। पर मोदी पर इस तरह का विश्वास मुझे आश्चर्यचकित करने वाला लगा। यह भी लगा कि मोदी अगर इस तरह के लोगों के विश्वास और आशा पर खरे न उतरे तो क्या दशा होगी?

बिखारी ने फिर कहा – मोदी-जोगी कुछ न कुछ करेंगे। उन्होने मोदी-जोगी का नाम लिया, भारतीय जनता पार्टी का नहीं। यह लगता है जनता जनार्दन में मोदी-जोगी को डेमी-गॉडत्व प्राप्त है, पार्टी को नहीं।

बिखारी ने फिर कहा – मोदी-जोगी कुछ न कुछ करेंगे। उन्होने मोदी-जोगी का नाम लिया, भारतीय जनता पार्टी का नहीं। यह लगता है जनता जनार्दन में मोदी-जोगी को डेमी-गॉडत्व प्राप्त है, पार्टी को नहीं।

बिखारी के चारों कांटे चुप चाप पड़े थे। मैने बिखारी से सवाल किया कि पता कैसे चलता है मछली फंस गयी है। बिखारी ने बताया कि हर कांटे के साथ एक लकड़ी का टुकड़ा तैर रहा है। उसमें हलचल होते ही पता चल जाता है। इन चारों कांटों के चारों टुकड़ों पर ध्यान रखना होता है।

आज जो मछली मिली है, उसको ले कर बिखारी खुश हैं। एक हाथ भर की है। पोटली में मछली यदाकदा फड़फड़ा रही थी और उसकी हलचल से लगता था कि बड़ी मछली है।

बिखारी अपने कांटों की दशा पर एक आंख गड़ाये मुझसे बात करते चले जा रहे हैं – अभी दो बजे दोपहर तक घर से फोन आ जायेगा यह पता करने के लिये कि कितनी मछली मिली। घर में सब इसका इन्तजार कर रहे होंगे।

यह बताइये कि यहां सोंइस देखी? – मैने पूछा। (सोंइस – गांगेय डॉल्फिन)

बिखारी – हाँ, वहां उछली थी सोइंस।

बिखारी ने जवाब दिया – हां, अभी पांच मिनट पहले ही वहां उछली थी। यहीं (उंगली से दिखा कर) आसपास है। वह देखो, फिर उछली। गंगा के दूसरे किनारे की ओर ज्यादा हैं।

बारिश के मौसम में भी आते हो, मछली पकड़ने? उस समय तो नहीं मिलती होंगी?

बिखारी ने मेरी अल्पज्ञता पर हल्की हंसी से जवाब दिया – इसके उलट उस मौसम में ज्यादा और बढ़िया मिलती हैं। आजकल तो पानी साफ़ है। इसमें कम होती हैं। बरसात में पानी मटमैला होता है। उसमें मछलियां ज्यादा होती हैं।

बिखारी से आगे मिलना तो शायद ही हो। पर उनका मोदी पर भरोसा याद रहेगा। मन में यह सवाल चलता ही रहेगा कि क्या है मोदी में, जिससे इस तरह का भरोसा इस ग्रामीण मछली पकड़ने वाले में आ गया है।

शायद पहले की सरकारों का भयंकर मिसमैनेजमेण्ट और भ्रष्टाचार जिम्मेदार है इसके लिये। शायद।


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धन्यवाद।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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