घुमा फिरा कर मुझसे पूछते हैं – कितने लोगों को नौकरी दिया होगा रेल सेवा के दौरान?
बताने पर कि 3-4 को बंगलो पीयून रखा था; वे कहते हैं कि आपसे पहले मिले होते तो जिनगी तर गयी होती! तब भेंड़ी-गाय-भैस थोड़े पालनी पड़ती।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
घुमा फिरा कर मुझसे पूछते हैं – कितने लोगों को नौकरी दिया होगा रेल सेवा के दौरान?
बताने पर कि 3-4 को बंगलो पीयून रखा था; वे कहते हैं कि आपसे पहले मिले होते तो जिनगी तर गयी होती! तब भेंड़ी-गाय-भैस थोड़े पालनी पड़ती।
“बोले कि उनका धरम (इस्लाम) नफरत का नहीं है। सेवा सिखाता है। देश में लोग गलत रास्ते जा रहे हैं, पर हम अपनी परम्परा बचा कर रखे हुये हैं। लोग यह समझ लें कि सबको साथ रहना है तो हमारे लिये जो घृणा होती जा रही है, वह न हो।”
“ऐसे तुरत फुरत में थोड़े ही बता सकता हूं। आपको चार पांच दिन बैठना होगा सुनने के लिये। परिवार पालने के लिये अस्सी रुपया महीने में रिक्शा चला चुका हूं। कर्जा पाटने के लिये एक समय था जब गांजा भी बेचा है।”