कोटा-परमिट राज का जमाना था। तब हर चीज का उत्पादन सरकार तय करती थी। सरकार इफरात में नहीं सोचती। लिहाजा किल्लत बनी रहती थी। हर चीज की कमी और कालाबाजारी। उद्यमिता का अर्थ भी था कि किसी तरह मोनोपोली बनाये रखा जाय और मार्केट को मेनीप्युलेट किया जाय। खूब पैसा पीटा ऐसे मेनीप्युलेटर्स ने। परContinue reading “किल्लत का अर्थशास्त्र चल रहा है क्या?”
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टॉवर, व्यक्तिगत जमीन और स्थानीय शासन
कल मेरे एक पुराने मित्र मुझसे मिलने आये। उनका विभाग ग्रामीण इलाके में खम्भे और तार लगा रहा है। उनकी समस्या यह है कि गांव के लोग अपने खेत में टॉवर खड़ा नहीं करने दे रहे।1 टॉवर खड़ा करना जमीन अधिग्रहण जैसा मामला नहीं है। इण्डियन टेलीग्राफ एक्ट की धाराओं के अनुसार किसी भी जमीनContinue reading “टॉवर, व्यक्तिगत जमीन और स्थानीय शासन”
रेल कर्मी और बैंक से सेलरी
जब से रेलवे की स्थापना हुयी है, रेल कर्मियों की सेलरी (मासिक तनख्वाह) बांटने का काम कैश ऑफिस के कर्मी करते रहे हैं। जब मैने रेलवे ज्वाइन की थी तब मुझे भी तनख्वाह कैश में मिलती थी। डिविजनल पेमेण्ट कैशियर (डीपीसी)1 आता था नियत दिन पर और हम सभी नये रेल अधिकारी रेलवे स्टॉफ कॉलेजContinue reading “रेल कर्मी और बैंक से सेलरी”
