राकेश जी को छोड़ने के लिये मैं घर के गेट तक गया। उनके जाते हुये मन में विचार आया कि घर में किसी के आने पर उन्हें चाय परोसी जाये तो (लौंग-इलायची भले हो न हो) साथ में तश्तरी में एक चुनौटी और सुरती होनी ही चाहिये।
Category Archives: गंगा नदी
बढ़ती उम्र में धर्म का आधार
सही मायने में वानप्रस्थ का अनुभव तो मैने किया ही नहीं। अभी भी राजसिक वृत्ति पीछा नहीं छोड़ती। लोगों, विचारों और परिस्थितियों की सतत तुलना करने और एक को बेहतर, दूसरे को निकृष्ट मानने-देखने की आदत जीवन से माधुर्य चूस लेती है।
ईंटवा का गंगा तट
लगता है ये मछलियां गंगा के जल में बह कर आगे नहीं निकल जातींं। यहीं रहती हैं। गंगा किनारे की मछलियां। मैं सोचता था कि जो जल में है सब बहता है। सब यात्रा पर है। पर वैसा नहीं है। कुछ जलचर भी एक ही जगह रहते हैं।
