सुकुआर हो गये हैं लोग। कुल्ला करने भी मोटर साइकिल से जाते हैं।


सुकुआर (नाजुक) हो गये हैं लोग। अब मेहनत नहीं करते। अब यह हाल है कि कुल्ला करने (खेत में हगने) भी मोटर साइकिल से जाने लगे हैं। ट्रेक्टर से खेती करते हैं। वह भी आलस से।

विस्थापित – न घर के न घाट के


अपने गांव के चमरऊट को मैं गरीब समझता था। पर इनकी दशा तो उनसे कहीं नीचे की है। उनके पास तो घर की जमीन है। सरकार से मिली बिजली, चांपाकल, सड़क और वोट बैंक की ठसक है। इन विस्थापितों के पास वह सब है? शायद नहीं।

आज की सुबह


घर पर आते आते थक जाता हूं मैं। एक कप चाय की तलब है। पत्नीजी डिजाइनर कुल्हड़ में आज चाय देती हैं। लम्बोतरा, ग्लास जैसा कुल्हड़ पर उसमें 70 मिली लीटर से ज्यादा नहीं आती होगी चाय। दो तीन बार ढालनी पड़ती है।

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