सुकुआर हो गये हैं लोग। कुल्ला करने भी मोटर साइकिल से जाते हैं।

मिश्री पाल पर पोस्ट 2016 में लिखी थी। उसके बाद अब मड़ैयाँ डेयरी पर मिलना हो रहा है आजकल। चौदह अप्रेल को मिले थे। उनपर लिखा भी था। आज फिर मिले। कुर्सी पर बैठे थे। मुझे देख कुर्सी मेरे लिये खाली कर दी और बगल में पशु आहार की बोरी पर बैठ गये।

मैंने उनसे यूं ही पूछा – उनके बैल अब कैसे हैं? उनसे खेती कर रहे हैं लोग?

फरवरी 2016 की पोस्ट में है कि उनके पास दो बैल थे और लोग किराये पर ले जाते थे खेती के लिये। अब उन्होने बताया कि तीन साल पहले बैल बेच दिये उन्होने। “गन्ना की खेती करता था बैलों से। वह खेती बंद कर दी। लोग भी अब बैल से खेती नहीं करा रहे।”

मिश्री पाल। “कुर्सी पर बैठे थे। मुझे देख कुर्सी मेरे लिये खाली कर दी और बगल में पशु आहार की बोरी पर बैठ गये। “

फिर कुछ सोच कर जोड़ा – “सुकुआर (सुकुमार – नाजुक) हो गये हैं लोग। अब मेहनत नहीं करते। अब यह हाल है कि कुल्ला करने (खेत में हगने) भी मोटर साइकिल से जाने लगे हैं। ट्रेक्टर से खेती करते हैं। वह भी आलस से। हम दो लोगों के पास बैल थे। एक मेरे पास और एक फलाने बिंद के पास। मेरा तो बिक गया है। बिंद के पास अब भी है। पता नहीं कब तक चलेगा हल-बैल।”

भेड़ें हैं मिश्री पाल के पास। मैंने कहा कि वही क्यों नहीं बढ़ाते। दो सौ हैं, तो पांच सौ, हजार क्योंं नहीं पालते?

उनका उत्तर वाजिब था – “जगहा नहीं है। जितनी जगह है उसमें इससे ज्यादा नहीं पल सकतीं। जमीन ज्यादा होती तो खेती भी होती और भेड़ें भी पलतीं।”

मिश्री पाल की बगल में एक और सज्जन आ कर बैठ गये। नाम बताया सितई। उनके पास भेड़ें नहीं हैं। उन्होने कहा – “मैं पाल (गड़रिया) नहीं, पटेल हूं। सितई पटेल। मेरे पास एक गाय है। एक जुआर उसका दूध घर के काम आता है और दूसरी बार का इस सेण्टर पर ले कर आता हूं। इसके अलावा खेती करता हूं।”

मिश्री पाल के बगल में बैठे हैं सितई पटेल।

मिश्री पाल या सितई पटेल छोटे काश्तकार हैं। उनके पास श्रम की ताकत है पर जमीन की किल्लत है। यह भी हो सकता है कि रूढ़ियां, कुरीतियां और जातिगत बाध्यतायें भी उन्हें जकड़े हों। यह भी सम्भव है कि व्यवसाय के अर्थशास्त्र की भी पुख्ता समझ न हो। पर इन लोगों से मिलना और इनके बारे में जानना अच्छा लगता है।

दोनो पास के गांव पठखौली के हैं। मैं उनसे कहता हूं कि घूमते घामते उनके यहां आऊंगा। वे भी प्रसन्न होते हैं। आने का आमंत्रण देते हैं। गांव में घूमते हुये देखता निकल जाया करता हूं। अब रुकने और उनका जीवन पास से देखने की सम्भावनायें बढ़ रही हैं इस डेयरी के सेण्टर पर आने से।


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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