हमने भी देखा – सावधानी से – तीन बच्चे थे बुलबुल के हथेली भर के घोंसले में। हल्की आहट पर तीनो अपनी चोंच खोल कर प्रतीक्षा करते थे कि उनके लिये खाना आ रहा होगा। तीनों मांस के लोथड़े जैसे हैं। उनके पंख अभी ठीक से जमे नहीं हैं।
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स्कूल, पढ़ाई और महुआ
बच्चा स्कूल नहीं जाना चाहता। पिता मिस्त्री का काम करता है तो वह उसके साथ लेबराना करना चाहता है। “ईंट तो उठा ही सकता हूं। लेबराना (मिस्त्री का हेल्पर) करूंगा, तभी तो मिस्त्री बनूंगा।” – बच्चे को अपनी लाइन, अपना भविष्य बड़ा स्पष्ट है।
कबूतरों और गिलहरियों का आतंक – भाग 2
यह गर्वानुभूति कायम रह पायेगी? अंतत: कौन जीतेगा? हम या कबूतर? या कबूतर रूपी यूक्रेन की सहायता को पोलेण्ड रूपी गिलहरियां कोई नया बखेड़ा कायम करेंगी? क्या “कबूतरों और गिलहरियों का आतंक” का कोई भाग 3 भी लिखना होगा?!
