आसन्न मानसून की मानसिक हलचल


मैं तो वेदर चैनल और तापक्रम के चक्कर में पड़ा हूंं, पर किसान अपने काम पर लग गया है। उसको कोई पगार या पेंशन तो मिलती नहीं। उसे तो खरीफ की फसल की तैयारी करनी ही है।

आसपास के चरित्र


यह बंदा तो फकीर लग रहा था। बूढ़ा। दाढ़ी-मूछ और भौहें भी सफेद। तहमद पहने और सिर पर जालीदार टोपी वाला।
उसके हाथ में एक अजीब सी मुड़ी बांस की लाठी थी। कांधे पर भिक्षा रखने के लिये झोला।

कोलाहलपुर के सुरेश


सेण्टर से कच्चा माल ले कर आते हैं और डिजाइन अनुसार बुनने के बाद सेण्टर पर देने से उन्हे काम के अनुपात में भुगतान होता है। सुरेश के अनुसार दो सौ रुपया रोज की आमदनी है। “इससे बढ़िया कहीं नौकरी/वाचमैनी होती?”

Design a site like this with WordPress.com
Get started