बिम्ब, उपमा और न जाने क्या!?


कल सुकुल कहे कि फलानी पोस्ट देखें, उसमें बिम्ब है, उपमा है, साहित्त है, नोक झोंक है। हम देखे। साहित्त जो है सो ढेर नहीं बुझाता। बुझाता तो ब्लॉग लिखते? बड़ा बड़ा साहित्त – ग्रन्थ लिखते। ढेर पैसा पीटते। पिछलग्गू बनाते!ऊ पोस्ट में गंगा के पोखरा बनाये। ई में गंगा माई! एक डेढ़ किलोमीटर कीContinue reading “बिम्ब, उपमा और न जाने क्या!?”

शहरीकरण और ब्लॉगिंग के साम्य


हिन्दी ब्लॉगरी के बारे में "सपाट होते विश्व" (The World is Flat) से उतना साम्य नहीं मिलता, जितना शहरीकरण के अपने आस पास दिख रहे फिनॉमिना या अर्बन रिवोल्यूशन पर किताब पढ़ने से मिलता है। जेब ब्रूगमान की लिंकित पुस्तक आप पढ़ें तो जैसा विभिन्न देशों में पिछले कई दशकों में शहरीकरण के उदाहरण मिलेंगे,Continue reading “शहरीकरण और ब्लॉगिंग के साम्य”

फ़र्जी काम (Fake Work)


मेरे मित्र और मेरे पश्चिम मध्य रेलवे के काउण्टरपार्ट श्री सैय्यद निशात अली ने मुझे फेक वर्क (Fake Work) नामक पुस्तक के बारे में बताया है। हम सब बहुत व्यस्त हैं। रोज पहाड़ धकेल रहे हैं। पर अन्त में क्या पाते हैं? निशात जी ने जो बताया, वह अहसास हमें जमाने से है। पर उसकीContinue reading “फ़र्जी काम (Fake Work)”

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