भोंदू अकेला नहीं था। एक समूह था – तीन आदमी और तीन औरतें। चुनार स्टेशन पर सिंगरौली जाने वाली ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे। औरतें जमीन पर गठ्ठर लिए बैठी थीं। एक आदमी बांस की पतली डंडी लिए बेंच पर बैठा था। डंडी के ऊपर एक छोटी गुल्ली जैसी डंडी बाँध रखी थी। यानीContinue reading “भोंदू”
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संगम, जल कौव्वे और प्रदीप कुमार निषाद की नाव
संगम क्षेत्र में जमुना गंगाजी से मिल रही थीं। इस पार हम इलाहाबाद किले के समीप थे। सामने था नैनी/अरईल का इलाका। दाईं तरफ नैनी का पुल। बस दो चार सौ कदम पर मिलन स्थल था जहां लोग स्नान कर रहे थे। सिंचाई विभाग वालों का वीआईपी घाट था वह। मेरा सिंचाई विभाग से कोईContinue reading “संगम, जल कौव्वे और प्रदीप कुमार निषाद की नाव”
मम, जै, आगा!
नत्तू पांड़े की भाषा में शब्द कम हैं, कारक-विशेषण-सर्वनाम पिद्दी पिद्दी से हैं। क्रियायें तो वैसी हैं जैसे ऊन बुचेड़ ली गयी भेड़ हों। पर अभिव्यक्ति बहुत है। पूरा शरीर अभिव्यक्ति का माध्यम है। उन्हे हम गंगा किनारे ले कर गये। घर से पैदल गये नत्तू पांड़े। पहले हनूमान जी के मन्दिर पर रुके। श्रद्धाContinue reading “मम, जै, आगा!”
