जिनका सोचना है कि नौकरशाही केवल ऐश करने, हुक्म देने और मलाई चाभने के लिये है; उन्हें हमारे जैसे का एक सामान्य दिन देखना चाहिये। सवेरे की व्यस्तता बहुत थकाऊ चीज है। वे लोग जो सवेरे तैयार हो कर भागमभाग कर जल्दी काम पर पंहुचते होंगे और फिर काम उन्हें एंगल्फ (engulf – निगल, समाहित)Continue reading “सवेरे की हाइपर एक्टिविटी”
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बिल्लू की रिक्शा खटाल
गोरखपुर में गोलघर और मोहद्दीपुर को जोड़ने वाली सड़क पर रेलवे के बंगले हैं। उनमें से एक बंगला मेरा था। सड़क के पार थी रिक्शा खटाल। रिक्शा खटाल का मालिक बिल्लू सवेरे अपने सामने मेज लगा कर बैठता था। चारखाने की तहमद पहने, सिर पर बाल नहीं पर चंद्रशेखर आजाद छाप मूंछें। आधी बढ़ी दाढ़ी,Continue reading “बिल्लू की रिक्शा खटाल”
वेब २.० (Web 2.0) और रेल महकमा
वेब २.० के प्रतीक मैं अपने ब्लॉग को ले कर रेलवे सर्किल में जिज्ञासाहीनता से पहले कुछ निराश था, अब उदासीन हूं। लगता है रेलवे का जीव अभी भी कम्प्यूटर और इण्टरनेट के प्रयोग में एक पीढ़ी पहले चल रहा है। प्रबन्धन के स्तर पर तो वेब २.० (Web 2.0) की तकनीक का प्रयोग सोचाContinue reading “वेब २.० (Web 2.0) और रेल महकमा”
