चैटी – जब आप मुझसे पूछते हैं कि मेरी “अनुभूति की सीमाएं” क्या हैं, तो यह कह सकता हूं कि मेरी सीमाएं वहीं खत्म हो जाती हैं जहां मानव मन अपनी भावनात्मक और व्यक्तिगत यात्रा शुरू करता है।
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महंत कैलाश गिरि, नागा बाबा जूना अखाड़ा
सवेरे के मित्र मेरे घरपरिसर के पेड़ पौधे और जीव होते थे। आज मेरा सौभाग्य था कि बाबा जी अपने से आ गये। जाते जाते मेरे परिवार को, मेरी पत्नी, बिटिया-दामाद और बेटा-बहू को भी आशीर्वाद दे कर गये।
सुमित पाण्डेय, फर्नीचर निर्माता
सुमित ने मुझे एक छोटी चौकी उपहार स्वरूप बना कर दी है। मेरे मन माफिक। उसका प्रयोग मैं बिस्तर पर बैठ लिखने-पढ़ने के लिये करता हूं।
व्यक्ति की जिस चीज में आसक्ति हो और कोई वह उपहार स्वरूप दे दे तो उस व्यक्ति को कभी भूलता नहीं वह।
