डेमी गॉड्स बनने के चांस ही न थे!


भारतीय रेल यातायात सेवा के वार्षिकोत्सव पर गीत गाते श्री विवेक सहाय; सदस्य यातायात, रेलवे बोर्ड। वह जमाना सत्तर-अस्सी के दशक का था जब सरकारी ग्रुप ए सेवा का बहुत वजन हुआ करता था। मुझे एम वी कामथ का एक अखबार में लेख याद है कि स्कूली शिक्षा में मैरिट लिस्ट में आने पर लड़केContinue reading “डेमी गॉड्स बनने के चांस ही न थे!”

बबूल और बांस


मेरा मुंह तिक्त है। अन्दर कुछ बुखार है। बैठे बैठे झपकी भी आ जा रही है। और मुझे कभी कभी नजर आता है बबूल। कोई भौतिक आधार नहीं है बबूल याद आने का। बबूल और नागफनी मैने उदयपुर प्रवास के समय देखे थे। उसके बाद नहीं। कौटिल्य की सोचूं तो याद आता है बबूल काContinue reading “बबूल और बांस”

सतत युद्धक (Continuous Fighter)


छ सौ रुपल्ली में साल भर लड़ने वाला भर्ती कर रखा है मैने। कम्प्यूटर खुलता है और यह चालू कर देता है युद्ध। इसके पॉप अप मैसेजेज देख लगता है पूरी दुनियां जान की दुश्मन है मेरे कम्प्यूटर की। हर पांच सात मिनट में एक सन्देश दायें-नीचे कोने में प्लुक्क से उभरता है: गांधीवादी एकContinue reading “सतत युद्धक (Continuous Fighter)”

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