अर्जुन प्रसाद पटेल अपनी मड़ई पर नहीं थे। पिछली उस पोस्ट में मैने लिखा था कि वे सब्जियों की क्यारियां बनाते-रखवाली करते दिन में भी वहीं कछार में होते हैं और रात में भी। उनका न होना मुझे सामान्य न लगा। एक लड़की दसनी बिछा कर धूप में लेटी थी। बोली – बाबू काम परContinue reading “सर्दी कम, सब्जी कम”
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गांव की ओर
द्वारकापुर गांव में गंगा किनारे पीपल का पेड़ मैं गांव गया। इलाहाबाद-वाराणसी के बीच कटका रेलवे स्टेशन के पास गांव में। मैने बच्चों को अरहर के तने से विकेट बना क्रिकेट खेलते देखा। आपस में उलझे बालों वाली आठ दस साल की लड़कियों को सड़क के किनारे बर्तन मांजते देखा। उनके बालों में जुयें जरूरContinue reading “गांव की ओर”
ओवरवैल्यूड शब्द
मसिजीवी का कमेण्ट महत्वपूर्ण है – टिप्पणी इस अर्थव्यवस्था की एक ओवरवैल्यूड कोमोडिटी हो गई है… कुछ करेक्शन होना चाहिए! ..नही? मैं उससे टेक-ऑफ करना चाहूंगा। शब्द ब्लॉगिंग-व्यवस्था में ओवर वैल्यूड कमॉडिटी है। इसका करेक्शन ही नहीं, बबल-बर्स्ट होना चाहिये। लोग शब्दों से सार्थक ऊर्जा नहीं पा रहे। लोग उनसे गेम खेल रहे हैं। उद्देश्यहीनContinue reading “ओवरवैल्यूड शब्द”
