कोई दुकान नहीं, कोई इन्वेंट्री नहीं, फिर भी खूब चलता है दूबे जी का बिजनेस. सब मोबाइल फोन का कमाल है.
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दाढ़ी बढ़ गई है
यह समय अजीब है. कुछ भी कहना, लिखना, सम्प्रेषण करना चाहता हूँ; वह घूम फिर कर पिताजी की स्मृति से जुड़ जाता है.
दस दिवसीय दाह संस्कार क्वारेण्टाइन – शोक, परंपरा और रूढ़ियां
पिताजी की याद में कई बार मन खिन्न होता है. पर उनकी बीमारी में भी जो मेरा परिवार और मैं लगे रहे, उसका सार्थक पक्ष यह है कि मन पर कोई अपराध बोध नहीं हावी हो रहा.
