प्रमोद शुक्ल और गड़ौली धाम की गायें


वे गौ पालन में किसी तरह के शॉर्ट-कट के पक्ष में नहीं नजर आये। “गांव वाला आदमी चारे में कॉम्प्रोमाइज कर दस रुपया बचाता है पर उससे वह 100 रुपया खो देता है। मैं वैसा काम कत्तई नहीं करूंगा।” – प्रमोद शुक्ल ने कहा।

साकार होता गड़ौली धाम


आसपास गांवों घूमते हुये लोगों से बातचीत में उनकी अपेक्षायें, आशंकायें और (सहज) ईर्ष्या, परनिंदा और छुद्र कुटिलता के भी दर्शन हुये। पर सभी यह जरूर समझ रहे थे कि कुछ अनूठा होने जा रहा है, जो इस अलसाये ग्रामीण परिवेश में अत्यधिक बदलाव लायेगा।

अ-निमंत्रित


संक्रांति पर समारोह में गुड़ का लड्डू रखा गया है ट्रे में। निमंत्रित लोग खा रहे हैं। एक सहृदय वालेण्टियर उसे भी एक लड्डू दे देता है। एक हाथ में लड्डू ले कर वह तुरंत दूसरा आगे करता है – “एक ठे अऊर दई द। हमार बूढा बा संघे (एक और देदो, मेरी पत्नी भी साथ में है)।”

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