बाबा विश्वनाथ तो प्रेमसागर के सदा साथ हैं। यह पूरी यात्रा कोई साधारण यात्रा नहीं, उनकी संकल्प सिद्धि का साधन नहीं; अपने में तीर्थ बन गयी है।
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रैवतक-गिरनार के बगल से गुजरे प्रेमसागर
प्रेमसागर 7 दिसम्बर को जूनागढ़ पंहुचे। … यहीं बगल में पूर्व की ओर गिरनार या रैवतक पर्वत है। जिसे देवताओं का निवास माना गया है। इस पर्वत का कई बार उल्लेख महाभारत और हरिवंश पुराण में होता है।
घोघावदर-गोण्डल से जेतलसर, और आगे
गोण्डल की गंदगी और इन तीर्थ पदयात्रियों की तंग करने की प्रवृत्ति ने सौराष्ट्र में जो सुखद अनुभवों का गुलदस्ता बन रहा था और जिसे ले कर प्रेमसागर खूब मगन थे, उसमें से कुछ पुष्प नोच लिये।
