प्रयागराज गया था मैं पिछले मंगलवार। ढाई दिन रहा। शिवकुटी का कोटेश्वर महादेव का इलाका बहुत सुन्दर चित्रों वाली दीवालों से उकेरा हुआ था। पहले यह बदरंग पोस्टरों से लदा होता था। बड़ा सुन्दर था यह काम। (अर्ध) कुम्भ मेला तीन महीने में होगा प्रयागराज में। कई शताब्दियों बाद शहर का नाम पुन: प्रयागराज हुआContinue reading “पेण्ट माई सिटी प्रॉजेक्ट, प्रयागराज”
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कटका (गांव) के लिये ब्रॉडबैण्ड की तलाश
मेरा विचार कटका/विक्रमपुर (जिला भदोही) को साल-छ महीने में सोशल मीडिया में कुछ वैसा ही प्रोजेक्ट करने का है, जैसा मैने शिवकुटी के गंगा कछार को किया था। ग्रामीण जीवन में बहुत कुछ तेजी से बदल रहा है। उस बदलाव/विकास को दर्ज करना और जो कुछ विलुप्त होता जा रहा है, उसका आर्काइव बनाना एकContinue reading “कटका (गांव) के लिये ब्रॉडबैण्ड की तलाश”
जवाहिर लाल नहीं रहा!
पिछले सप्ताह इलाहाबाद गया था। शिवकुटी। गंगा किनारे तो नहीं गया, पर गड्डी गुरु (वीरेंद्र वर्मा) को मेरे आने का पता चला था तो मिलने चले आये थे घर पर। गड्डी गुरू से ही पता चला बाकी लोगों के बारे में – वे जो मेरे नित्य के कछार भ्रमण के साथी थे। रावत जी कहीं बाहरContinue reading “जवाहिर लाल नहीं रहा!”
कोहरा और भय
सौन्दर्य और भय एक साथ हों तो दीर्घ काल तक याद रहते हैँ। सामने एक चीता आ जाये – आपकी आंखों में देखता, या एक चमकदार काली त्वचा वाला फन उठाये नाग; तो सौन्दर्य तथा मृत्यु को स्मरण कराने वाला भय; एक साथ आते हैं। वह क्षण आप जीवन पर्यन्त नहीं भूल सकते। घने कोहरेContinue reading “कोहरा और भय”
चेत राम
मैं उन्हे गंगा किनारे उथले पानी में रुकी पूजा सामग्री से सामान बीनने वाला समझता था। स्केवेंजर – Scavenger. मैं गलती पर था। कई सुबह गंगा किनारे सैर के दौरान देखता हूं उन्हे एक सोटा हाथ में लिये ऊंचे स्वर में राम राम बोलते अकेले गंगा के उथले पानी में धीरे धीरे चल कर पन्नियों,Continue reading “चेत राम”
जात हई, कछार। जात हई गंगामाई!
जात हई, कछार। जात हई गंगामाई। जा रहा हूं कछार। जा रहा हूं गंगामाई! आज स्थानान्तरण पर जाने के पहले अन्तिम दिन था सवेरे गंगा किनारे जाने का। रात में निकलूंगा चौरी चौरा एक्स्प्रेस से गोरखपुर के लिये। अकेला ही सैर पर गया था – पत्नीजी घर के काम में व्यस्त थीं। कछार वैसे हीContinue reading “जात हई, कछार। जात हई गंगामाई!”