कुछ यादें


यह पोस्ट श्रीमती रीता पाण्डेय (मेरी पत्नी जी) की है| वर्तमान भारत की कमजोरियों के और आतंकवाद के मूल इस पोस्ट में चार दशक पहले की यादों में दीखते हैं –———बात सन १९६२-६३ की है। चीन के साथ युद्ध हुआ था। मेरे नानाजी (पं. देवनाथ धर दुबे) को देवरिया भेजा गया था कि वे वहांContinue reading “कुछ यादें”

सर्चने का नजरिया बदला!


@@ सर्चना = सर्च करना @@ मुझे एक दशक पहले की याद है। उस जमाने में इण्टरनेट एक्प्लोरर खड़खड़िया था। पॉप-अप विण्डो पटापट खोलता था। एक बन्द करो तो दूसरी खुल जाती थी। इस ब्राउजर की कमजोरी का नफा विशेषत: पॉर्नो साइट्स उठाती थीं। और कोई ब्राउजर टक्कर में थे नहीं। बम्बई गया था मैं।Continue reading “सर्चने का नजरिया बदला!”

चुनाव, त्यौहार, बाढ़ और आलू


मैं तो कल की पोस्ट – "आलू कहां गया?" की टिप्पणियों में कनफ्यूज़ के रास्ते फ्यूज़ होता गया। समीर लाल जी ने ओपनिंग शॉट मारा – "…मगर इतना जानता हूँ कि अर्थशास्त्र में प्राइजिंग की डिमांड सप्लाई थ्योरी अपना मायने खो चुकी है और डिमांड और सप्लाई की जगह प्राइज़ निर्धारण में सट्टे बजारी नेContinue reading “चुनाव, त्यौहार, बाढ़ और आलू”

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