गांव में छ दशकों में अखबार


चौबे जी, शायद पास के गांव चौबेपुर के निवासी थे। बनारस से माधोसिंह के बीच अखबार पंहुचाया करते थे। सफेद धोती-कुरता-जाकिट और टोपी पहने कांग्रेसी थे वे। अस्सी के आसपास उनकी मृत्यु हुई।

गुलाब नाऊ


जातियां, काम धंधे, गांव की हाईरार्की – इन सब से मेरा पाला रोज रोज पड़ता है। कभी लगता है कि समाजशास्त्र का विधिवत अध्ययन कर लूं। एक दो साल उन्हीं पर पुस्तकें पढूं। शायद मेरी समझ और नजरिया सुधरे।

स्वास्थ्य का स्रोत – घर का बगीचा


कण्डाल से एक छोटी प्लास्टिक की बालटी में पानी ले कर वे हर पौधे के पास जाती हैं और उसकी जरूरत अनुसार पानी उनकी जड़ों में उड़ेलती हैं। पानी कण्डाल से लेने, चलने, झुकने आदि में जो व्यायाम है, वह पत्नीजी के स्वास्थ्य को पुष्ट करता है।

विश्वनाथ के घुटने की तकलीफ


वह मुझे अपना घुटनों पर मलने वाला तेल दिखाता है। एक सौ बीस रुपये की छोटी शीशी। चीता मार्क घुटनों की मालिश का तेल। मुझे वह शीशी बहुत अच्छी नहीं लगती, पर विश्वनाथ का कहना है कि उससे आराम मिलता है।

सूखे पत्ते बीनते बच्चों के खेल


बगल के घर के बाहर कुछ बच्चे घर बना रहे थे। मैं उन्हें पहचानता हूं। उनमें से वे बच्चे हैं जिन्हें सागौन के सूखे पत्ते बीनते देखा था। अब वे दो कमरे बना चुके हैं। कुछ दूर हट कर एक और कमरा बना है। शायद वह शौचालय हो।

सूखे पत्ते बीनते बच्चे


सूखे पत्ते जैसी तुच्छ वस्तु, जिसका कोई मोल नहीं लगाता और जो कूड़ा-करकट की श्रेणी में आती है, किसी को इतनी प्रसन्नता दे सकती है?! गरीबी की प्रसन्नता!