कोरोना का काल हमें कोहनिया रहा है कि हम गांव वाले बनें। किराना के सामान के प्रकार और गुणवत्ता को ले कर व्यक्तित्व में जो अफ़सरी तुनक बाकी रह गयी है (रिटायरमेण्ट के चार साल बाद भी) वह खतम होनी चाहिये। चॉकलेट की बजाय गुड़ की भेली और नूडल्स की बजाय देसी सेंवई पर सन्तोष करना चाहिये।
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लॉकडाउन काल में सुबह की चाय पर बातचीत
शैलेंद्र ने कहा – कितनी शांति है दिदिया। लॉकडाउन के इस काल में, घर में किसी की कोई डिमाण्ड नहीं है। सबको पता है कि जितना है, उसी में गुजारा करना है।
रवींद्रनाथ दुबे – एन.आर.वी. और शहर-गांव का द्वंद्व
रवींद्रनाथ जी अपने गांव से हर समय किसी न किसी प्रकार जुड़े रहे हैं। वे मेरी तरह “बाहरी” नहीं हैं।
