नहुष में स्वर्ग से पतित होने पर भी मानवीय दर्प बना है। यही दर्प आज भी सफलता से डंसे पर अन्यथा कर्मठ मानवों में दिखता है। यही शायद मानव इतिहास की सफलताओं की पृष्ठभूमि बनाता है।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
नहुष में स्वर्ग से पतित होने पर भी मानवीय दर्प बना है। यही दर्प आज भी सफलता से डंसे पर अन्यथा कर्मठ मानवों में दिखता है। यही शायद मानव इतिहास की सफलताओं की पृष्ठभूमि बनाता है।