कभी भी शहर जाता हूं तो स्टेशनरी/किताब की दुकान पर जरूर जाता हूं। मेरी पत्नीजी को वह पसंद नहीं है। पर मुझे भी उनका टेर्राकोटा या नर्सरी पर पैसे खर्च करना पसंद नहीं है। लिहाजा हम दोनो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में जीते हैं।
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डायरी, घास, निठल्ला मन, राखी और यादोत्सव
घर में बहुत चांव चांव है। मुझे मेरी बहन की आयी राखी बिटिया ने बांधी। बहन की याद आ रही है। उसके बहाने अपनी माँ-पिताजी की भी याद आ रही है। कोई भी त्यौहार क्या होता है, उम्र बढ़ने के साथ वह अतीत का यादोत्सव होने लगता है।
