द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा के एक महत्वपूर्ण अंश में बलभद्र जी सहायक बने। उनका सहयोग रामेश्वरम सेतु वाली गिलहरी जैसा नहीं, नल-नील जैसा माना जाना चाहिये। उनके रहने से ही प्रेमसागर वह दुर्गम रास्ता पार कर पाये।
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मैने संकल्प न किया होता, तो यह यात्रा कभी न करता – प्रेमसागर
छ साल पहले हृदय रोगी जो छ मीटर भी नहीं चल सकता था, आज पैदल मैकल पहाड़ चढ़ गया! … प्रेम सागर कहते हैं कि अगर वे हृदय रोग से उबरे न होते तो उनका हार्ट फेल हो गया होता!
रोक लिया आज धूप बारिश और पैर के दर्द ने
कल प्रेम सागर को गुजरना पड़ा जंगल के बीच से। पदयात्रा के बीच में बारिश कई बार आ गयी। रुकने को कोई जगह नहीं मिली। भीगना खूब हुआ। बारिश रुकने पर धूप भी चटक थी। उससे भी तबियत ढीली हो गयी।
