बात करने के लिये मैंने उनसे पूछा – कुछ लहा (कुछ हाथ लगा?)
नगीना ने जवाब दिया – “अबहीं का? अबहीं तो आ के बैठे हैं। घण्टा डेढ़ घण्टा बैठेगे। तब पता चलेगा। कौनो पक्का थोड़े है। लहा लहा नाहीं त दुलहा!”
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
बात करने के लिये मैंने उनसे पूछा – कुछ लहा (कुछ हाथ लगा?)
नगीना ने जवाब दिया – “अबहीं का? अबहीं तो आ के बैठे हैं। घण्टा डेढ़ घण्टा बैठेगे। तब पता चलेगा। कौनो पक्का थोड़े है। लहा लहा नाहीं त दुलहा!”