रोक लिया आज धूप बारिश और पैर के दर्द ने


कल प्रेम सागर को गुजरना पड़ा जंगल के बीच से। पदयात्रा के बीच में बारिश कई बार आ गयी। रुकने को कोई जगह नहीं मिली। भीगना खूब हुआ। बारिश रुकने पर धूप भी चटक थी। उससे भी तबियत ढीली हो गयी।

वृद्धा बोलीं आगे पीछे की 14 पुश्तें तर जायेंगी!


माताजी एक ठो बात और बोलीं – “बेटा जो यह बारहों ज्योतिर्लिंग यात्रा कर रहे हो, उससे तुम्हारा चौदह पुश्त पहले का और चौदह पुश्त बाद का भी तर जायेगा!
सहायता करने वालों के लिये बोलीं – उन लोगों का पूर्वजनम का जो भी पाप होगा, वह धुल जायेगा। वे फिर कभी जनम नहीं लेंगे।”

रीवा से बाघवार – विंध्य से सतपुड़ा की ओर


आगे रास्ता बहुत खतरनाक था। सर्पिल “जलेबी जैसी” सड़क। जरा सा फिसले नहीं कि खड्ड में गिर जाने का खतरा। सर्पिल सड़क से हट कर एक जगह पगड़ण्डी पकड़ी प्रेम सागर ने और पांच-सात किलोमीटर बचा लिये। शाम पांच बजे वे बाघमार रेस्ट हाउस पंहुच गये थे।

Design a site like this with WordPress.com
Get started