गाय, सुनील ओझा और गड़ौली धाम


दीर्घजीवन की सेंच्यूरी मारने की इच्छा शायद मेरे शहरी जीवन त्याग कर इस ग्रामीण अंचल में बसने के निर्णय के मूल में है। हो सकता यही चाह सुनील जी को गड़ौली धाम लाई हो। जो हो; इस शतकीय सोच की एक एक गेंद खेलना और लिखना है!

विक्षिप्त पप्पू


पप्पू से कोई बात करता हो, ऐसा नहीं देखा। वह आत्मन्येवात्मनातुष्ट: ही लगता है। हमेशा अपने से ही बात करता हुआ। दार्शनिक, सिद्ध और विक्षिप्त में, आउटवर्डली, बहुत अंतर नहीं होता। पता नहीं कभी उससे बात की जाये तो कोई गहन दर्शन की बात पता चले।

कबूतरों और गिलहरियों का आतंक


कबूतर और गिलहरियों के आतंक के साथ एक सतत और लम्बी जंग लड़नी होगी। अगर हम नॉनवेजिटेरियन होते तो यह लड़ाई बड़ी जल्दी जीती जा सकती थी। पर शाकाहारी होने के कारण हमारा आत्मविश्वास पुख्ता नहीं है। आप ही बतायें, यह जंग हम जीत पायेंगे?

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