वर्वर राव, इन्टर्नेट और वैश्वीकरण


वर्वर राव पर एक चिठ्ठा पढ़ा. वर्वर राव (या वारा वारा राव) को मैं पीपुल्स वार ग्रुप के प्रवक्ता के रूप में जानता हूं. सत्तर का दशक होता तो मैं उनका भक्त होता. उस समय जयप्रकाश नारायण में मेरी अगाध श्रद्धा थी. कालान्तर में जेपी को वर्तमान के समाजवादी पार्टी/आरजेडी/जेडी(यू) के वर्तमान नेताओं मे “मॉर्फ” होते देखा. उन नेताओं मे से बहुतों के पास “आय के ज्ञात स्रोतों से ज्यादा सम्पत्ति” है. रूस का पतन, बर्लिन की दीवार का ढहना, बिहार/झारखण्ड/ओड़ीसा/आन्ध्र में नक्सली अराजकता आदि ने इस प्रकार के लोगों से मेरा मोहभंग कर दिया है.

मैं वर्वर राव को भ्रष्ट नहीं मानता. पर वे वर्तमान युग के काम के भी नहीं हैं.

वर्वर राव को महिमामण्डित करने वाले; समाजवाद/भूख/आदिवासी लाचारी/किसानों का भोलापन आदि को भावुकता तथा नोस्टाल्जिया की चाशनी में डुबो कर बढिया व्यंजन (लेख) बनाने और परोसने वाले लोग हैं. ऐसे लोग प्रिंट तथा टेलीवीजन पर ज्यादा हैं. मजे की बात है कि वैश्वीकरण के धुर विरोधी (वर्वर राव) का महिमामण्डन वैश्वीकरण के सबसे सशक्त औजार – इन्टर्नेट से हो रहा है! अल कायदा भी वैश्वीकरण के इस तंत्र का प्रयोग विश्व में पलीता लगाने के लिये करता है.

भावुकता तथा नोस्टाल्जिया मुझे प्रिय है. गुलशन नंदा को पढे जमाना गुजर गया – पर उनके नावलों में मजा बहुत आता था. वर्वर राव के बारे में वह मजा नहीं आता. उनपर पढ़ने की बजाय मैं गुरुचरण दास की India Unbound पढ़ना चाहूंगा. उसमें भविष्य की आशायें तो हैं!

(फुटनोट १: वर्वर राव को सामन्तवाद और उपनिवेशवाद से चिढ़ है; मुझे भी है. मनुष्य को दबाना कायरता है. पर वर्वर राव प्रासंगिक नहीं हैं.)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

One thought on “वर्वर राव, इन्टर्नेट और वैश्वीकरण

  1. आपका कहना सही है। आज के दौर मे सच्‍चई, और विश्‍वसनीयता का नामो निशान नही है। आज कल के पत्र कार भी ऐसे ही है जो अपनी प्रसिद्धि कि लिये नीचे तक गिर सकते है।

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