कशीनाथ सिंह जी की “काशी का अस्सी” पढ़ने के बाद जो एक खुन्दक मन में निरंतर बनी है वह है – मेरे पुरखों और मां-पिताजी ने भाषा तथा व्यवहार की इतनी वर्जनायें क्यों भर दीं मेरे व्यक्तित्व में. गालियों का प्रयोग करने को सदा असभ्यता का प्रतीक बताया गया हमारे सीखने की उम्र में. भाषाContinue reading ““काशी का अस्सी” के रास्ते हिंदी सीखें”
Monthly Archives: May 2007
दशा शौचनीय है (कुछ) हिन्दी के चिठ्ठों की?
अज़दक जी आजकल बुरी और अच्छी हिन्दी पर लिख रहे हैं. उनके पोस्ट पर अनामदास जी ने एक बहूत (स्पेलिंग की गलती निकालने का कष्ट न करें, यह बहुत को सुपर-सुपरलेटिव दर्जा देने को लिखा है) मस्त टिप्पणी की है: “…सारी समस्या यही है कि स्थिति शोचनीय है लेकिन कुछ शौचनीय भी लिख रहे हैं,Continue reading “दशा शौचनीय है (कुछ) हिन्दी के चिठ्ठों की?”
हुसैन क्यों फंसे हैं?
हुसैन ने हिन्दू देवी-देवताओं के नग्न चित्र बनाये हैं. यह बड़ा रोचक होगा देखना कि भारत का सहिष्णु समाज उन्हें अंतत: कैसे छोड़ देगा. अल्पसंख्यक कार्ड उनके पक्ष में जाता है. यह अवश्य है कि मेरे मन में अगर इरोटिका का भाव होता (जो नहीं है) और मैं चित्रकार होता (जो बिल्कुल नहीं है), तबContinue reading “हुसैन क्यों फंसे हैं?”
