कबि न होहुं नहिं चतुर कहाऊं; मति अनुरूप राम गुण गाऊं. बाबा तुलसीदास की भलमनसाहत. महानतम कवि और ऐसी विनय पूर्ण उक्ति. बाबा ने कितनी सहजता से मानस और अन्य रचनायें लिखी होंगी. ठोस और प्रचुर मात्रा में. मुझे तो हनुमानचालिसा की पैरोडी भी लिखनी हो तो मुंह से फेचकुर निकल आये. इसलिये मैं यत्र-तत्रContinue reading “कबि न होहुं नहिं चतुर कहाऊं”
Monthly Archives: Sep 2007
वृद्धावस्था के कष्ट और वृन्दावन-वाराणसी की वृद्धायें
मेरे मित्र श्री रमेश कुमार (जिनके पिताजी पर मैने पोस्ट लिखी थी) परसों शाम मुझे एसएमएस करते हैं – एनडीटीवी इण्डिया पर वृद्धों के लिये कार्यक्रम देखने को कहते हैं. कार्यक्रम देखना कठिन काम है.पहले तो कई महीनों बाद टीवी देख रहा हूं तो “रिमोट” के ऑपरेशन में उलझता हूं. फिर वृद्धावस्था विषय ऐसा हैContinue reading “वृद्धावस्था के कष्ट और वृन्दावन-वाराणसी की वृद्धायें”
गड़बड़ रामायण – आम जनता का कवित्त
बचपन से गड़बड़ रामायण सुनते आये हैं. फुटकर में चौपाइयां – जिनको कुछ न दिमाग में आने पर अंत्याक्षरी में ठेला जाता था! पर कोई न कोई वीटो का प्रयोग कर कहता था कि यह तो तुलसी ने लिखा ही नहीं है. फिर वह नहीं माना जाता था. पर होती बहुत झांव-झांव थी. यह सामग्रीContinue reading “गड़बड़ रामायण – आम जनता का कवित्त”
