जिप्सियाना स्वभाव को ले कर जब मैने पोस्ट लिखी तो बरबस पॉउलो कोएल्हो की पुस्तक द अलकेमिस्ट की याद हो आयी। (अगर आपने पुस्तक न पढ़ी हो तो लिंक से अंग्रेजी में पुस्तक सार पढ़ें।) उसका भी नायक गड़रिया है। घुमन्तु। अपने स्वप्न को खोजता हुआ मिश्र के पिरामिड तक की यात्रा करता है। वह संकेतों को समझता है, दैवीय चिन्हों को महत्व देता है और दैवीय सहायता भी मांगता/प्राप्त करता है। मुझे भी लगा कि कुछ वैसा रोमांचक हम लोगों की जिंदगी में भी होना चाहिये।
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¶ दुनियां में हर व्यक्ति के लिये एक खजाना उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। |
नये साल के संकल्प की बात भी मन में है। विचार आता है कि इन्द्रप्रस्थ जरूरी नहीं कि नगर-अट्टालिकायें भर हों। इन्द्रप्रस्थ पाण्डवों के समग्र संकल्प और क्षमता का टेन्जिबल अवतरण है। वह शून्य (खाण्डववन जैसी मूल्यहीन जमीन) से निर्मित मानव की क्षमताओं का चमत्कृत कर देने वाला प्रमाण है। ऐसा अभूतपूर्व मैं या हम क्या कर सकते हैं? युधिष्ठिर द्वारा मेरे स्वप्न में किया गया प्रश्न एक चैलेंज भी है और आवाहन भी।
नये साल में इन्द्रप्रस्थ बनाना है। चाहे वह मूर्त हो या अमूर्त। मैं अपनी पत्नी से बात करता हूं और वे भी सहमत हैं। इन्द्रप्रस्थ भविष्य की कर्मठता का निमित्त है। हम सब को अपना अपना इन्द्रप्रस्थ तय करना और बनाना है। और उस बनाने की प्रक्रिया में महाभारत का अपना रोल है। महाभारत जीवन की जद्दोजहद का दूसरा नाम है। वह अन्तत: इन्द्रप्रस्थ को और मजबूती प्रदान करता है।
अपना इन्द्रप्रथ तय करने की प्रक्रिया अपनी क्षमताओं के आकलन, अपने पास के संसाधनों, दैवयोगों, अपनी लम्बे समय से चल रही जानी-अनजानी तैयारियों और उससे ऊपर ईश्वरीय सहायता मांगने और पहचानने पर बहुत निर्भर है।
आइये मित्रों नव वर्ष के अवसर पर अपने इन्द्रप्रस्थ को पहचानें और पूरी समग्रता से उसके सफल निर्माण के लिये ईश्वरीय आवाहन करें। संकल्प निर्माण की कुंजी है।
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मेरे घर में गुलदाउदी पूरे यौवन पर है। नरगिस की कलियां चटकने लगी हैं। नये साल के पहले दिन तो नरगिस के फूल पूरी रंगत में आ जायेंगे। नव वर्ष मंगलमय हो! |

आपकी ये पोस्ट थोडी अजदकनुमा लग रही है, खैर अभी नया साल आने में कुछ घंटे बाकी हैं, आपके यहाँ तो इसने पैर पसार लिये होंगे ।आपको एवं आपके परिवार को नये साल की हार्दिक शुभकामनायें । ईश्वर करे इस वर्ष आपके सपनों का इन्द्रप्रस्थ आपके सामने मूर्त रूप ले ।साभार,
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नए साल की ढेरों शुभकामनाएँ. आपकी मानसिक हलचल बरकरार रहे और रेल पटरी पर दौड़ती रहे….
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और यह है श्री रवि रतलामी की टिप्पणी जो मेल से प्राप्त हुयी है – टिप्पणी लम्बी है, पर है बहुत महत्वपूर्ण:****************************** प्रिय ज्ञान जी,निम्न टिप्पणी आपकी 31 दिसम्बर की पोस्ट पर देना चाहा, परंतु नेटवर्क में गड़बड़ी थी.शायद न पहुँची हो…—-कीमियागर पर निरंतर (nirantar.org) में मेरी एक समीक्षा प्रकाशित हुयी थी जो किदुर्भाग्य से अब उपलब्ध नहीं है. समीक्षा निम्न है-पुस्तक समीक्षा*-*-*अल्केमिस्ट*-**-*किसी किताब पर अगर कमलेश्वर जैसे महारथी साहित्यकार का नाम उसके अनुवादक के रूप मेंहो, उसकी 2 करोड़ से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हों, देश-विदेश की 55 भाषाओं में जिसकाअनुवाद हो चुका हो, तो यह किताब किसी भी साहित्य प्रेमी को पढ़ने के लिए ललचाएगी हीकि आखिर इस किताब में ऐसी क्या चीजें कही गई हैं? पहली ही नज़र में ऐसा प्रतीत होता हैकि किताब में दम तो होना ही चाहिए. पर, कभी-कभी कुछ कयास ठीक से नहीं बैठ पाते.ब्राजीली लेखक पाओलो कोएलो की लिखी, हिन्दी में अनूदित किताब अल्केमिस्ट के बारे में कुछऐसा ही कहा जा सकता है.जैसे कि किताब के शीर्षक के नीचे ही टैग लाइन दिया गया है- अपने सपनों को साकार करनेकी एक ऐंद्रजालिक कहानी – समूची किताब संयोगों, चमत्कारों से पटी पड़ी है और इसमेंअविश्वसनीय, काल्पनिक रासायनिक क्रियाओं के द्वारा स्वर्ण बनाने की कला अंतत: सीख लेनेके एक कीमियागर और एक छुपे खजाने को खोजने में लगे एक गड़रिए युवक की कहानियाँ हैं. किसीसुखांत नाटक की तरह कहानी के अंत में वह खजाना नायक को नाटकीय अंदाज में अपने ही ठौरपर दबा हुआ मिलता है, जिसे वह अपने स्वप्न के आधार पर तमाम दुनिया में तलाशता फिर रहा था.किताब में जगह-जगह ईश्वर पर आस्था बनाए रखने और अपनी चाहत, अपने सपनों को बनाए रखनेके संदेश है. और, प्राय: एक ही तरह की बात बार-बार, अलग-अलग तरीके से दोहराए गए हैं.जैसे कि –“जब तुम सचमुच किसी चीज को पाना चाहते हो तो संपूर्ण सृष्टि उसकी प्राप्ति में मदद केलिए तुम्हारे लिए षड्यंत्र रचती है”तथा-“जब तुम पूरे दिल से किसी चीज को पाना चाहते हो तभी तुम उस विश्वात्मा के सबसे नजदीकहोते हो. और वह शक्ति सदैव सकारात्मक होती है.”चमत्कारों-घटनाओं को किस्सागोई अंदाज में कहने की कला के फलस्वरूप ही चंद्रकांता संतति तथाहैरी पॉटर जैसी किताबें शायद इसीलिए ही लोकप्रिय हुए, और शायद अल्केमिस्ट कीलोकप्रियता का कारण भी यही है.हिन्दी साहित्य के महारथी कमलेश्वर इस किताब का चुनाव अनुवाद हेतु करने में भले ही गच्चाखा गए हों, परंतु अपने अनुवादों में वे पूरे सफल रहे हैं. कुछ विदेशी नामों को छोड़ कर आपकोकहीं भी ऐसा प्रतीत नहीं होता कि आप कोई अनुवाद पढ़ रहे हैं. भाषा का प्रवाह गतिमानहै. पठनीयता, रहस्य-रोमांच अंत तक बना रहता है. इसके प्रकाशक विस्डम ट्री(http://www.wisdomtreeindia.com ) ने किताब का कलेवर और काग़ज़ शानदार प्रस्तुतकिया है. प्रूफ की अशुद्धियाँ नगण्य सी हैं और टाइप सेट ऐसा है कि पाठक को पढ़ने में थकानमहसूस नहीं होती है.कुल मिलाकर, अगर आप अपने बचपन के दिनों की किसी परीकथा को नए-सूफ़ियाना अंदाज मेंफिर से पढ़ना चाहते हों तो यह किताब किसी धूप भरी, छुट्टी की दुपहरी के लिए ठीक है.परंतु, जैसा कि किताब में कई-कई बार दोहराया गया है, अगर आपका कोई सपना है, उसे पूराकरना है, तो इस किताब को पढ़कर समय बरबाद मत कीजिए. बेहतर है कि आप अपने उस स्वप्नको पूरा करने में लग जाएँ. ईश्वरीय शक्तियाँ आपके सपने को पूरा करने का षड्यंत्र रचेंगी औरआपका सपना सचमुच पूरा होगा. आमीन.*-*-*पुस्तक नाम: अल्केमिस्टलेखक: पाओलो कोएलोअनुवादक: कमलेश्वरप्रकाशक: विस्डम ट्री, सी-209/1, मायापुरी II, नई दिल्ली 110064आईएसबीएन क्र. 81-86685-69-3कीमत: रुपए 95/- (संस्करण 2004)*-*-*———-नववर्ष की शुभकामनाएँ.रवि
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पॉउलो कोएल्हो को तो नहीं पढ़ा झूट क्यों कहें लेकिन उनकी कही बात को मैंने अपने एक शेर में ढाला है शायद आपने पढ़ा हो “जिस को बाहर है ढूँढता फिरता….वो ही हीरा तेरी खदान में है” उम्मीद में हैं की इस वर्ष वो हीरा मिल जाए तो खोज समाप्त हो.आप के घर के बगीचे के खिलते फूल देख तबियत प्रस्सन हो गई. मुम्बई में तो ऐसे बगीचे की कल्पना पर भी टैक्स लगता है. हमारे जयपुर के घर के बगीचे के फोटो आप को भेजूँगा जो वास्तव में दिल खुश कर देने वाला है.नीरज
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अलकेमिस्ट पढ़ी है मैने, सहमत हूं!!इंद्रप्रस्थ बनाने के लिए खांडव वन की तलाश में ही हूं ;)नव वर्ष आपके लिए भी मंगलमय हो!!
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