आम, आम नहीं, बहुत खास है!


आज पंकज जी अपनी अतिथि पोस्ट में आम के विषय में अनजाने तथ्यों पर हमारा ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। आप आम के खास औषधीय गुणों के विषय में इस लेख के माध्यम से जान पायेंगे।
आप पढ़ें श्री पंकज अवधिया जी की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट। उनकी पहले की पोस्टें आप “पंकज अवधिया” लेबल/वर्ग पर क्लिक कर देख सकते हैं।
कृपया पोस्ट पढ़ें:


अब आम बौराने लगे हैं। आम के वृक्ष बचपन ही से हम सब के जीवन से जुडे रहे हैं। बचपन मे एक पुस्तक मे पढ़ा था कि आम की बौर के उचित उपयोग से एक अनोखा कार्य किया जा सकता है। पुस्तक मे लिखा था कि आम की बौर को लगातार हथेली मे रगडने के बाद जब आप किसी व्यक्ति के दर्द वाले भाग पर इसे रखेंगे तो उसे सुकून प्राप्त होगा। पुराने जमाने की कहानियों मे यह वर्णन मिलता है कि साधु ने जैसे ही दर्द वाले भाग को छुआ, दर्द गायब हो गया। यह दरअसल आम का बौर को रगडने के कारण हुआ होगा। बाद मे जब मैने वानस्पतिक सर्वेक्षण आरम्भ किये तो पारम्परिक चिकित्सकों ने यह बात दोहरायी। बौर को रोज सुबह आधे घंटे तक हथेली पर मलना होता है। एक सप्ताह मे ही ये गुण आ जाते हैं। अधिक समय तक ऐसा करने से अपने ही शरीर को लाभ होने लगता है। इस प्रयोग के दौरान मिट्टी ही से हाथ धोने की सलाह दी जाती है। शहरों मे रह कर हाथ को तेज रसायनो से बचा पाना सम्भव नही लगता है। आज भी सोंढूर-पैरी-महानदी पारम्परिक चिकित्सक इसे अपनाते हैं और रोगियों को आराम पहुँचाते हैं।

चिकित्सा से सम्बन्धित प्राचीन ग्रंथ बताते है कि आम की सूखी पत्तियो को जलाने से पैदा हुआ धुँआ कई रोगो मे लाभ पहुँचाता है। कुछ वर्षो पहले जब मैने एक उद्यमी के लिये कई तरह की हर्बल सिगरेट तैयार की तो बवासिर (पाइल्स) के लिये उपयोगी सिगरेट मे अन्य वनस्पतियो के साथ आम की पत्तियो को भी मिलाया। यह हर्बल सिगरेट बवासिर मे राहत पहुँचाती है। अब उद्यमी इसका वैज्ञानिक परीक्षण कराने की तैयारी कर रहे हैं ताकि इसे उत्पाद के रूप मे बाजार में ला सकें। मैने कोशिश की कि शायद इसे पीकर सामान्य सिगरेट पीने वाले भी यह बुरी आदत छोड पायें पर सफल नही हुआ।

आम की छाँव तेज गरमी मे राहत पहुँचाती है। स्त्री रोगों की चिकित्सा मे महारत रखने वाले पारम्परिक चिकित्सक सुबह के समय इसकी छाँव मे बैठने की सलाह रोगियों को देते हैं। उनके अनुसार इसे रोगियों को अपनी दिनचर्या मे शामिल कर लेना चाहिये।

यदि आपने आम के पेड़ को ध्यान से देखा होगा तो आपने तनों पर गाँठ भी देखी होगी। पारम्परिक चिकित्सक इन गाँठो के प्रयोग से तेल बनाते हैं। यह तेल गठिया के रोगियों के लिये बहुत उपयोगी होता है। पारम्परिक चिकित्सकों से यह तेल लेकर मैने अपने मित्रो और परिवारजनों को दिया है।

आम के फल के विषय मे तो अक्सर लिखा जाता है। इसलिये मैने उन भागों के विषय मे इस लेख मे लिखने की कोशिश की जिनके उपयोगो के विषय मे आप कम जानते है। आम के जिन वृक्षो के विषय मे प्राचीन ग्रंथो मे लिखा है वे वृक्ष तो तेजी से कम होते जा रहे हैं। अब अधिक उत्पादन देने वाले बडे और स्वादिष्ट फलो से लदे वृक्ष सभी अपने आस-पास देखना चाहते है। क्या इन नयी जातियो मे भी वे ही औषधीय गुण हैं? बहुत से विषय विशेषज्ञ कह सकते है कि हाँ, बिल्कुल हैं पर वे अपने पक्ष मे वैज्ञानिक दस्तावेज नहीं प्रस्तुत कर पायेंगे क्योकि आम के औषधीय गुणों पर केन्द्रित विशेषकर इसके फल के अलावा अन्य भागों पर कम शोध हुये हैं। यदि यही प्रश्न पारम्परिक चिकित्सकों से पूछें तो वे साफ कहेंगे कि दवा के लिये पुराने देशी वृक्ष ही उपयोगी हैं। इस नजरिये से आज यह जरुरी हो गया है कि पुराने वृक्षों के अलावा पुराने बागीचों को भी बचाना जरुरी है। साथ ही आम के औषधीय गुणों के विषय मे जानकारी रखने वाले पारम्परिक और आधुनिक विशेषज्ञ मिलकर औषधीय गुणो मे धनी किस्मे विकसित करने का प्रयास करें।

प्रस्तुत चित्र हैदराबाद के खास सफेद आम के पेड का हैं। कहते है कि वहाँ के निजाम इसे पहरे मे रखते थे ताकि कोई फल न चुरा ले। आम पूरी तरह से सफेद होता है अन्दर भी बाहर भी पर स्वाद लाजवाब होता है। दिसम्बर 2007 मे डेक्कन डेव्हलपमेंट सोसायटी के आमंत्रण पर मै पास्तापुर गया था। यह पेड उन्ही के बागीचे मे लगा है। यह तस्वीर आप ज्ञान जी के ब्लाग पर ही देख पायेंगे।

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पंकज अवधिया

© इस लेख का सर्वाधिकार श्री पंकज अवधिया का है।


कल मैं इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर श्रीमती और श्री समीर लाल जी से मिला। लगभग २५ मिनट – उनकी ट्रेन चलने तक। हम लोग प्रत्यक्ष मिल कर अपने लिंक और् मजबूत बना सके। इण्टरनेट के बॉण्ड आमने सामने गले मिल कर बना लिये समीर जी से। उनकी पत्नी जी भी अत्यन्त प्रभावी व्यक्तित्व हैं। दोनो से मिलने पर बहुत प्रसन्नता हुयी। मेरा फोटो तो बिना फ्लैश के मोबाइल कैमरे का है। ट्रेन के अन्दर कम रोशनी में। अच्छा फोटो तो श्रीमती लाल ने खींचा है जो समीर जी दिखा सकते हैं।

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कल अरविंद मिश्र जी ने यह आशंका व्यक्त की कि मेरा ब्लॉगिंग कम करना विभागीय अन्तर्विरोध का परिणाम न हो। वास्तव में न यह विभागीय अन्तर्विरोध है, न ब्लॉगीय। कल समीर जी से स्टेशन पर मिल कर आने के बाद जब मेरा पद परिवर्तन हुआ, तबसे मैं यह सोचने में लगा हूं कि अपना समय प्रबंधन कैसे किया जाये। अभी स्पष्टता नहीं है। ब्लॉग से आमदनी का टार्गेट तो मेरा बहुत मॉडेस्ट है – अगले ८-१० साल में लगभग सौ डॉलर आजकी रेट से महीने में कमा सकना, जिससे कि ब्लॉगिन्ग अपने में सेल्फ सस्टेनिंग हो सके। लेकिन पैसा कमाना प्रमुखता कतई नहीं रखता। कतई नहीं। हां, अरविन्द मिश्र जी की उलाहना भरी टिप्पणी बहुत अपनी लगी। वास्तव में सभी टिप्पणियां अपनत्व से भरी लगीं। क्या जादू हो गया है यह सम्बन्धों के रसायन में!

हां इस सप्ताह न लिख पाऊंगा, टिप्पणयां भी शायद ही दे पाऊं। नियमित ब्लॉग पढ़ने का यत्न अवश्य करूंगा। अगली पोस्ट सोमवार को।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

12 thoughts on “आम, आम नहीं, बहुत खास है!

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