मेरे पास पर्सनल डाक बहुत कम आती है। पर एक मस्त ड़ाक आयी। और भला हो दफ्तर के दफ्तरी का कि उसे स्पैम मानकर छांट नहीं दिया।
एक पोस्ट कार्ड मिला मुझे अपने डाक-पैड में। इसको भेजने वाले हैं कोई ओमप्रकाश मिश्र। जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष। भावी प्रधान मन्त्री। जन्मस्थान चाका नैनी, इलाहाबाद।
कल को अगर सही में प्रधानमन्त्री बन जायें तो यह मत कहियेगा कि हमने आगाह नहीं किया था!
इस पोस्ट कार्ड के पीछे उनका मेनीफेस्टो छपा है। जो मेरी समझ में खास नहीं आया। आप चिरौरी करें तो मैं उसे भी स्कैन कर पेश कर दूंगा। अभी तो आप पोस्ट कार्ड के फ्रण्ट का जलवा देखें –
इस देश में तरह तरह के रोचक जीव रहते हैं। क्या ख्याल है आपका!
जब मैं रेलवे का मण्डल स्तर पर पब्लिक इण्टरफेस देखता था तो किसी बड़े समारोह पर इतने रिप्रजेण्टेशन मिलते थे कि बोरे में भी न समायें! उनमें से अनेक १०-२० पेज के होते थे। बहुत बुरी तरह ड्राफ्टेड। शुरू से अन्त तक पढ़ जायें पर पता न चले कि शूरवीर कहना क्या चाहते हैं, और रेलवे से क्या चाहते हैं!
उसकी प्रति प्रधानमन्त्री जी से ले कर तहसीलदार तक को एड्रेस होती थी! साथ में अखबार की ढ़ेरों कटिंग जुड़ी रहती थीं। एक सज्जन की तो मुझे याद है – वे अपने रिप्रजेण्टेशन में इत्र लगा कर भेजते थे। अगला पढ़े चाहे न पढ़े, इत्र जरूर सूंघता था! इत्र लगाते थे तो रिप्रजेण्टेशन में दर्जनों कवितायें ठेलते थे, जो "कमलेश" बैरागी की कविताओं की टक्कर की होती थीं। एक बार मंच से श्रीमन्त माधवराव सिन्धिया जी ने मुझे कह दिया कि फलाने की दरख्वास्त पर जरा ध्यान दे दिया जाये। उसके बाद फलाने ने दरख्वास्त में तो जाने क्या लिखा था, पर वे मुझसे साल भर तक चिपके रहे कि मैं उनको रेलवे की नौकरी दिलवा दूं। अब उनको क्या बताता कि हमारी नौकरी ही बड़ी मुश्किल से लगी थी – कितना रट्टा लगाया था हमने सिविल सेवा परीक्षा पार करने को! अजित वड़नेरकर बार बार मुझसे कहते हैं कि उनके ब्लॉग के लिये बकलम खुद सामग्री दूं। अब कैसे बताऊं कि एक मुश्त उनको लिख कर दे दूंगा तो यहां फुटकर फुटनोट में ठेलने को क्या बचेगा! |
शानदार पोस्ट है ज्ञानदा। आपकी नज़रसानी को मान गए…मगर इनके बहाने से बकलमखुद से नहीं बच पाएंगे क्योंकि आपने अभी तक ना नहीं कहा है। अगर आसान होता तो अभी तक कह भी चुके होते । कुछ नज़रसानी अपने बीते हुए पर कीजिए और कुछ शब्दों के सफर पर। यकीन मानिये, आप कुछ खास हैं, आप में कुछ खास है।
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पिछली बार तो ५-६ उम्मीदवार थे प्रधानमंत्री पद के। इस बार तो अभी इनका ही नाम सुना है।ये सब सिर्फ़ शोहरत बटोरने का या यूँ कहे lime light मे रहने का तरीका है।
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महत्वकांक्षी व्यक्ति मालूम होते हैं…. और भगवान् ने चाहा और वो बन गए तो…. आपकी तो बड़ी जान-पहचान है… [हमारी भी सिफारिश करा दीजियेगा तब तक हम शायद और एक-दो डिग्री ले लेंगे और हमें तो RBI का गवर्नर ही बनवा दीजियेगा 🙂 ]और बकलम खुद लिख ही डालिए … तब भी बीच-बीच मे ये फुटनोट डालते रहिएगा… साथ मे बकलम के लिंक भी !
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