एक नई पीढ़ी देख कर आया हूं। उसके साथ भविष्य की ओर लौटना लाजमी है। नाती हमेशा फुंदनेदार टोपी ही पहने थोड़े रहेगा। उसे इस शताब्दी के पार ले जाना है इस देश को, दुनियां को। कैसी होगी दुनियां? कैसी होगी चुनौतियां?
अल गोर के शब्दों में कहें तो धरती हो बुखार है। सतत पेरासेटामॉल पर चल रही है। यह बुखार चलता रहा तो शताब्दी के अन्त तक तापक्रम ४ डिग्री बढ़ जायेगा। कोयला और खनिज तेल इसी तरह प्रयुक्त होते रहे तो CO2 बढ़ती रहेगी। भारत की अर्थव्यवस्था अगर ८% से बढ़ी तो जो कार्बन उत्सर्जन होगा, वह पौधों-जंगलों के बस में नहीं नियंत्रित करना। धरती वासियों को उत्तरोत्तर गर्मी, सूखा, बाढ़, और तूफानों का अधिकाधिक सामना करना होगा।
नत्तू पांड़े को अभी तक वातानुकूलन से बचा कर रखा गया था, जिससे कोई संक्रमण न हो। पर भविष्य में शायद सतत एयरकण्डीशन में रहने की आदत पड़े।
और वह एयरकण्डीशनिंग और गरम करेगी धरती को। मुझे यकीन है कि नत्तू पांड़े पर्याप्त सक्षम होंगे आर्थिक रूप से – मेरी पीढ़ी से कहीं ज्यादा। पर अगर उन्हें नेतृत्व@ करना है अपने समाज और दुनियां का तो कहीं बड़ा चैलेंज फेस करना होगा।
गंगा के मीठे जल की डॉल्फिन (सोईंस) तो मेरे जमाने में नहीं रही। गिद्ध विलुप्तप्राय हैं। गौरैया और मोर भी जा रहे हैं। चीन में भी यांग्त्सी नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिनें विलुप्त हो गई हैं। नत्तू को कौन कौन जीव साथ देंगे?
अल-कायदा और नक्सली तो शायद एक ड़ेढ़ दशक में चुक जायेंगे। पर पानी के लिये जद्दोजहद नत्तू की पीढ़ी को झेलनी होगी।
खैर, मुझे यकीन है कि नत्तू और उसकी पीढ़ी हमसे ज्यादा जिम्मेदारी से चलायेंगे दुनियां को। उन्हें इन चुनौतियों को न केवल झेलना है, पर नये नोआ की नाव में दुनियां को बचा कर सकुशल रखना है।
@ बेचारा छटंकीलाल! उसपर नेतृत्व की अपेक्षायें ठेली जा रही हैं!
कटरा, इलाहाबाद के चौराहे पर नेतराम की छत पर टीवी एण्टीना टॉवर:
कितना स्टील लगता है टेलीकॉम रिवोल्यूशन में?! आप तो मेटल/स्टील में निवेश कर दीजिये! सरकार बनी है तो केवल नरेगा (नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेण्ट गारण्टी एक्ट) से नहीं चलेगी। इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास पर ध्यान जरूर देगी।

अल-कायदा और नक्सली तो शायद एक ड़ेढ़ दशक में चुक जायेंगे—–हमें इस स्टेटमेंट पे पूरा शक है….हालातो से ऐसा नहीं लगता…..चारा छटंकीलाल! उसपर नेतृत्व की अपेक्षायें ठेली जा रही हैं!…….हाँ इससे जरूर इत्तिफाक है ….ठीक वैसे ही जैसे विकसित देश अपनी सारी कार-गुजारियों का बोझ विकास-शील देशो पे डाल रहे है …हम आने वाली पीढियों पे
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हमें श्रीमान नत्तू पांडे जी को ऐसी दुनिया देनी है जिसे देख कर उसे अपने नाना दादा पर गर्व हो…शर्म नहीं आये…उसके लिए अभी से भागीरथी प्रयास करने जरूरी हैं…इसमें कोई शक नहीं की नत्तू जी की पीढी हमसे कई गुना अधिक सक्षम होगी…ज्ञान और सुविधाएँ जुटाने के मामले में..नीरज
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ये तो हद ही मचा दी है,नन्हे नत्तू पांडे पे क्या ठेले जा रहे हैं। कर लेगा, उसका टाइम आयेगा तो वह सब कर लेगा। ये पीढ़ी अपने बुजुर्गों से ज्यादा होशियार, और जिम्मेदार होगी, ऐसा आप यकीन कीजिये। जमाये रहिये।
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दुनिया को चलाए रखने के लिए प्रकृतिक संसाधनो का दोहन होता रहेगा. एक बिहड़ से ग्रह पर मानव जाती रहेगी. दुसरा कोई प्राणी नहीं होगा. सब तस्वीरों में देखेंगे. मगर आशा अमर है. अगली पढ़ी ज्यादा समझदार होगी. आबादी पर नियंत्रण लगाएगी. ए.सी. के स्थान पर वृक्ष को प्राथमिकता देगी. खारे पानी को मीठा बनाना सस्ता होगा. यानी पानी के लिए युद्ध नहीं होगा. जल संचय व पर्यावरण की रक्षक होगी अगली पीढ़ी. आमिन.
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आने वाली पीढियाँ यकीनन धरती और पर्यावरण को बचाए रखने में और अधिक सक्रीय होंगी ,यूँ तो आज कई प्रयास शुरू किये जा चुके हैं ,यह जरुर है कि प्रयास काफी नहीं हैं,और अधिक जागरूकता की जरुरत है.
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नत्तू पाण्डेय को फ़िर से आशीष और मंगलकामनायें।
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इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास पर ध्यान पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है…यहीं से ABCD शुरु होगी. नत्तु पाण्डॆय अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे..शुभकामनऐं.
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‘उसे इस शताब्दी के पार ले जाना है इस देश को, दुनियां को। कैसी होगी दुनियां? कैसी होगी चुनौतियां?’‘अल गोर के शब्दों में कहें तो धरती को बुखार है। सतत पेरासेटामॉल पर चल रही है।’ज्ञान भाई, ब्लाग नित्य पढ़्ता हूँ, इसीलिए कि कुछ विशेष मिलता है। आज तो आपनें,अपनीं संवेदनाओं एवं पर्यवेक्षण को इतनी सुंदरता से व्यंजित किया है कि मुग्ध हो गया।किन्तु ‘सरकार बनी है तो केवल नरेगा (नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेण्ट गारण्टी एक्ट) से नहीं चलेगी। इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास पर ध्यान जरूर देगी।’ यह कथन थोड़ा गंभीर विमर्श माँगता है। विकास के आधुनिक माड्यूल्स प्रकृति के अंधाधुन्ध दोहन पर आधारित हैं-‘इन्फ्रास्ट्रक्चर’ भी। ‘पर कैपिटा पावर कन्जम्सन’का पश्चिमी आदर्श प्रकृति में असंतुलन बढ़ा रहा है। कार्बन क्रेड़िट भी धंधेबाजों का फ्राड है। शायद लौटना‘सादा जीवन उच्च विचार’ पर ही पड़ेगा।
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हमलोगों के द्वारा किए जा रहे प्राकृतिक संसाधनों के अंधांधुध दोहन का फल उन्हें ही तो झेलना है।
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आने वाले कल को देखते हुए आपकी चिन्ता जायज है।सादर श्यामल सुमन 09955373288 http://www.manoramsuman.blogspot.comshyamalsuman@gmail.com
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