लीगल-एथिक्स (Legal Ethics) हीनता


Kazmi मैं एस जी अब्बास काजमी को बतौर एक अकेले व्यक्ति, या दुराग्रही व्यक्ति (परवर्ट इण्डीवीजुअल) के रूप में नहीं लेता। वे कसाब को बचा ले जायें या नहीं, वह मुद्दा नहीं है (वे न बचा पायें तो शायद सरकार बचाये रखे)। मुद्दा यह है कि कोई व्यक्ति/वकील यह जानते हुये भी उसके पक्ष में गलती/खोट है, उस पक्ष का बचाव कैसे कर सकता है?

 Legal Ethics


यह पुस्तक मैने नहीं पढ़ी। नेट पर इसका प्रिव्यू मात्र पढ़ा है। और वह रोचक है।

मैं वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में चमकदार नहीं रहा। पर छात्र दिनों में अपने मित्रों को वाद विवाद में किसी विषय के पक्ष और विपक्ष में मुद्दे जरूर सप्लाई किये हैं। और कई बार तो एक ही डिबेट में पक्ष और विपक्ष दोनो को मसाला दिया है। पर अगर किसी मुद्दे पर अपने को बौद्धिक या नैतिक रूप से प्रतिबद्ध पाता था, तो वहां किनारा कर लेता था। दुर्भाग्य से काजमी छाप लीगल काम में वह किनारा करने की ईमानदारी नजर नहीं आती।

मित्रों, भारत में विधि व्यवस्था में संसाधनों की कमी सबसे बड़ा मुद्दा नहीं है। किस व्यवस्था में संसाधन की कमी नहीं है? मैं किसी भी प्रॉजेक्ट पर काम करना प्रारम्भ करता हूं तो सबसे पहले संसाधनों की कमी मुंह बाये दीखती है। मैं मालगाड़ी परिवहन देखता हूं। उसमें इन्जन/वैगन/चालक/ ट्रैक क्षमता – सब क्षेत्रों में तो कमी ही नजर आती है। तब भी हमें परिणाम देने होते हैं।

पर अगर अपने काम के प्रति अनैतिक होता हूं, तब बण्टाढार होना प्रारम्भ होता है। तब मैं छद्म खेल खेलने लगता हूं और बाकी  लोग भी मुझसे वही करने लगते हैं।

यही मुझे भारत के लीगल सिस्टम में नजर आता है। क्लायण्ट और उसके केस के गलत या सही होने की परवाह न करना, तर्क शक्ति का अश्लील या बुलिश प्रयोग, न्यायधीश को अवैध तरीके से प्रभावित करने का यत्न, फर्जी डाक्यूमेण्ट या गवाह से केस में जान डालना, अपने क्लायण्ट को मौके पर चुप रह जाने की कुटिल (या यह कानून सम्मत है?) सलाह देना, गोलबन्दी कर प्रतिपक्ष को किनारे पर धकेलना, मामलों को दशकों तक लटकाये रखने की तकनीकों(?) का प्रयोग करना — पता नहीं यह सब लीगल एथिक्स का हिस्सा है या उसका दुरुपयोग? जो भी हो, यह सामान्य जीवन की नैतिकता के खिलाफ जरूर जाता है। और आप यह बहुतायत में होता पाते हैं। मेरी तो घ्राण शक्ति या ऑब्जर्वेशन पावर बहुत सशक्त नहीं है – पर मुझे भी यह उत्तरोत्तर बढ़ता नजर आता है। 

श्रीमन्, यह लीगल-एथिक्स हीनता असल गणक है जो व्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग/खम्भे को खोखला करता है। और इस तथ्य को इस आधार पर अनदेखा/दरकिनार नहीं किया जा सकता कि व्यवस्था के सारे ही खम्भे तो खोखले हो रहे हैं।

और सही समाधान काजमीत्व के स्थानपर व्यापक युधिष्ठिरीकरण की बात करना नहीं है। आप किसी को जबरी एथिकल नहीं बना सकते। पर इलेक्ट्रॉनिफिकेशन में समाधान हैं। नन्दन निलेकनी को किसी अन्य क्षेत्र में इसी प्रकार के समाधान हेतु अथॉरिटी का अध्यक्ष बनाया गया है। कुछ वैसा ही काम लीगल क्षेत्र में भी होना चाहिये।      


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

33 thoughts on “लीगल-एथिक्स (Legal Ethics) हीनता

  1. पढ कर आश्चर्य नहीं हुआ क्यूं कि तकरीबन एक हजार साल से ऐेसे ही लोगों ने विदेशी आक्रमणकारियों की मदद की है, जिसकी वजह से देश को लूटा गया और गुलाम बनाने का षडयंत्र रचा गया । ऐसे महापुरूष पैदा न हुए होते तो देश का बंटवारा न हुआ होता । अभी भी इनके तमाम भाई बन्धु राजनीति और दूसरी जगहों पर सक्रिय हैं और अलगाववादियों की खुल कर मदद कर रहे हैं। ऐसी ईमानदारी से गद्दारी कर रहे हैं कि इनको गद्दार शिरोमणि रत्न प्रदान करना चाहिए ।

    Like

  2. हम तो पहले से ही कहते आ रहे है हर पेशे में घुसने से पहले" मोरल साइंस 'का क्रेश कोर्स करवाया जाए ..चाहे डॉ हो,इंजीनियर हो…वकील .जज या पत्रकार या सरकारी अफसर…नैतिक शिक्षा का कोर्स अब होता नहीं है ….लोग अपने निजी सरोकार से ऊपर नहीं उठते है…उनके लिए कोई भी मुद्दे तभी महत्वपूर्ण होते है जब तक उनका उनका वास्ता उन मुद्दों से जुदा रहता है….किसी ने कहा है गांधी जी ने वकालत में नैतिकता के लिए केस छोडा था…हो सकता है पर नैतिकता के कई पैमाने है .एक पैमाने पर आप खरा सोना है पर दुसरे पे…..फर्ज कीजिये एक वैजानिक है देश को महत्वपूर्ण आविष्कार दे रहा है पर अपनी पत्नी को मारता पीटता है .नेगलेक्ट करता है ….तो उस पैमाने पे क्या कहेंगे ?समय सबकी अलग अलग सूरत दिखाता है ……कुछ पेशो में जमीर से जद्दो जेहद ज्यादा है … वकालत के पेशे में शायद सबसे ज्यादा ….कौन कहाँ कितना अपने जमीर को खींचता है यही अब महत्वपूर्ण है .मैंने मन्नू भंडारी का एक वक्तव्य पढ़ा था …."आप अपने सीमित दायरे में रहकर भी अगर अपना काम इमानदारी से करेगे तो सच मानिये इस देश ओर समाज को कुछ दे जायेगे ….."दूसरा गुरुमंत्र हमारा एक सीनियर दिया करता था ".आजकल के जमाने में नोर्मल होना ही असधारहण होना है " कभी मौका मिले तो " we the people " पढिये

    Like

Leave a reply to डॉ .अनुराग Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started