सरपत की ओर


सिरसा के उत्तर में गंगा में मजे से पानी है। इलाहाबाद में यमुना मिलती हैं गंगा में। उसके बाद पनासा/सिरसा के पास टौंस। टौंस का पाट बहुत चौड़ा नहीं है, पर उसमें पानी उतना है जितना संगम में मिलने से पहले गंगा में है। अत: जब सिरसा के पहले टौंस का पानी गंगा में मिलता है तो लगता है कि मरीज गंगा में पर्याप्त बल्ड ट्रांससफ्यूजन कर दिया गया हो। गंगा माई जीवंत हो उठती हैं।

[सबसे नीचे दिया नक्शा देखें। सिरसा से पहले एक पतली सी सर्पिल रेखा गंगा नदी में मिलती है – वह टौंस नदी है।]

पॉण्टून का पुल है गंगाजी पर सिरसा से सैदाबाद की तरफ गंगापार जाने के लिये। चौपहिया गाड़ी के लिये पच्चीस रुपये लगते हैं। रसीद भी काटता है मांगने पर। न मांगो तो पैसा उसकी जेब में चला जाता है। एक दो लाल तिकोनी धर्म ध्वजाये हैं। आसपास के किसी मन्दिर से कुछ श्लोक सुनाई पड़ रहे थे। गंगाजी की भव्यता और श्लोक – सब मिलकर भक्ति भाव जगा रहे थे मन में।

तारकेश्वर बब्बा ने बता दिया था कि गाड़ी धीरे धीरे चले और लोहे के पटिय़ों से नीचे न खिसके। वर्ना रेत में फंस जाने पर चक्का वहीं घुर्र-घुर्र करने लगेगा और गाड़ी रेत से निकालना मुश्किल होगा। ड्राइवर साहब को यह हिदायत सहेज दी गयी थी। धीरे चलने का एक और नफा था कि गंगाजी की छटा आखों को पीने का पर्याप्त समय मिल रहा था।

एक कुकुर भी पार कर रहा था गंगा उस पॉण्टून पुल से। इस पार का कुकुर उस पार जा कर क्या करेगा? मेरे ख्याल से यह कुछ वैसे ही था कि हिन्दुस्तान का आदमी पाकिस्तान जाये बिना पासपोर्ट/वीजा के। उस पार अगर कुकुर होंगे तो लखेद लेंगे इसे। पर क्या पता उस पार का हो और इस पार तस्करी कर जा रहा हो! पाकिस्तानी या हिन्दुस्तानी; नस्ल एक ही है। कैसे पता चले कि कहां का है!

लोग पैदल भी पार कर रहे थे पुल और कुछ लोग मुर्दा लिये जाते भी दिखे! एक पुल, उस पर वाहन भी चल रहे थे, पैदल भी, कुकुर भी और मुर्दा भी। मुर्दे के आगे एक ठेले पर लकड़ी लादे लोग चल रहे थे। जलाने का इंतजाम आगे, मुर्दा पीछे। प्रारब्ध आगे, आदमी पीछे!

DSC03095पुल पार करने पर बहुत दूर तक रेत ही रेत थी। गंगा जब बढती होंगी तो यह सब जल-मग्न होता होगा। अगली बारिश के समय आऊंगा यहां गंगाजी की जल राशि देखने को। पौना किलोमीटर चलने के बाद सरपत दीखने लगे कछार में। आदमी से ज्यादा ऊंचे सरपत। दोनो ओर सरपत ही सरपत। क्या होता होगा सरपत का उपयोग? बहुत से लोगों की जमीन ये सरपत के वन लील गये हैं। आदमी एक बार बीच में फंस जाये तो शायद भटक जाये! कोई चिन्ह ही नजर न आये कि किस ओर जाना है। मुझे बताया गया कि नीलगाय बहुत पलती हैं इसी सरपत के जंगल में। सरपत के जंगल बढ़े हैं और नीलगाय भी बढ़ी हैं तादाद में। कुछ लोग सरपत काट कर बाजार में बेंचते हैं। ध्याड़ी कमा ही लेते हैं। मुझे कुछ औरतें दिखीं जो सरपत काट कर गठ्ठर लिये चलने की तैयारी में थीं।

बहुत दिनों से सोच रहा था मैं यायावरी पर निकलने के लिये। वह कुछ हद तक पूरी हुई। पर सेमी यायावरी। काहे कि पत्नीजी साथ थीं, नाहक निर्देश देती हुईं। गांव में कुछ लोग थे जो मेरी अफसरी की लटकती पूंछ की लम्बाई नाप ले रहे थे। फिर भी मैं संतुष्ट था – सेमी यायावरी सही!

इलाहाबाद से भीरपुर की यात्रा में एक बुढ़िया के आस पास चार पांच गदेला (बच्चे) बैठे थे सड़क के किनारे। वह तवे पर लिट्टी सेंक रही थी। मन हुआ कि गाड़ी रुकवा कर मैं भी उसके कलेवा में हिस्सा मांगूं। पर कैमरे से क्लिक भी न कर पाया था फोटो कि गाड़ी आगे बढ़ चली थी। पक्की यायावरी होती तो अपना समय अपने हाथ होता और वहां रुकता जरूर! खैर, जो था सो ठीक ही था।

मै था, कछार था, सरपत का जंगल था – पहले देखे जंगल से ज्यादा बड़ा और कल्पना को कुरेदता हुआ। सुना है लच्छागिर [1] के पास ज्यादा खोह है और ज्यादा सरपत। अगली बार वहां चला जाये!

सरपत जल्दी पीछा न छोड़ेंगे चाहत में! चाहत को जितना जलाओ, उतनी प्रचण्ड होती है। सरपत के जंगल को जितना जलाया जाये, बरसात के बाद उतना ही पनपते हैं सरपत!


[1] लच्छागिर – या लाक्षागृह। सिरसा के आगे गंगाजी के उत्तरी किनारे पर स्थान। कहा जाता है कि वहीं पाण्डवों को लाख के महल में जला कर मार डालने की योजना थी दुर्योधन की। पर वे खोह और जंगलों में होते भाग निकले थे रातों रात। किसके जंगल थे उस समय? सरपत के?!

Sirsa

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

43 thoughts on “सरपत की ओर

  1. @ जलाने का इंतजाम आगे, मुर्दा पीछे। प्रारब्ध आगे, आदमी पीछे!
    — सत्य है , पर अनुभूत है मुर्दे के समीप ही , जीवन में अहं कितना भ्रामक है ! जैसे भटकाव भरे सरपत में उलझाए रखता हो ! और इस सरपत के बारे में आपने सही ही कहा है ” सरपत जल्दी पीछा न छोड़ेंगे चाहत में! चाहत को जितना जलाओ, उतनी प्रचण्ड होती है। सरपत के जंगल को जितना जलाया जाये, बरसात के बाद उतना ही पनपते हैं सरपत! ”
    बस एक यायावरी है जो बहुत कुछ अनुभव कराती है – कुछ हो जावे भाव कि ” मन लागो यार फकीरी में / जो सुख पायो राम भजन में / सो सुख नाहिं अमीरी में ‘ !!”

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    1. हां, यह लगा कि जो अनुभूति यायावरी में है, घर में किताब पढ़ने में नहीं। बाहर निकलता है आदमी तो ही कुछ अन्दर आता है!

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  2. अजी आज पहली बार सुना कि मुर्दा भी पुल पार कर रहा हे:) चलो हमे क्या, जब कुकर पार जा सकता हे तो मुर्दा क्यो नही जी, लेकिन कुकर कही दिखाई नही दिया

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  3. संस्मरण रोचक है, नई बातों का पता चला.आश्चर्य है कि १५ वर्षों के प्रयाग प्रवास में भी मैं इस जगह नहीं पहुंच पाया.

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  4. कुकुर वाला पैराग्राफ सबसे अच्छा लगा. क्यूरियस च एक्स्प्लोरर कुकुर.

    रुक कर लिट्टी खाने वाली सोच अक्सर सोच ही रह जाती है ! कभी हिम्मत कीजिये अच्छा लगेगा. कोई साथ हो तो हो जाता है. अगर दोनों वैसे ही लोग हो तो. एक पुश की जरुरत होती है दोनों को और दोनों एक दुसरे को ठेल देते हैं 🙂

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  5. सरपत के जंगल. वाह ! मगरवारा की याद आ गयी. मेरे पिताजी वहाँ स्टेशन मास्टर थे. तब हमलोग गेहूँ के खेतों में स्थित बेर के पेड़ से बेर तोड़ते थे, खेत का मालिक दौड़ाता था, तो सरपत के जंगल हमें छुपा लेते थे. लेकिन कभी-कभी बड़ी भयावह लगती हैं यही सरपत की झुरमुटें.

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  6. बहुत ही मनमोहक सेमी यायावरी. सरपत के जंगल ने भी मन मोह लिया. अकेले उन वीरानियों में भटकने का भी अपना एक अलग मजा है. आभार.

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  7. ‘। इस पार का कुकुर उस पार जा कर क्या करेगा? मेरे ख्याल से यह कुछ वैसे ही था कि हिन्दुस्तान का आदमी पाकिस्तान जाये बिना पासपोर्ट/वीजा के। ’

    नहीं जी… उसे तो नत्थी विज़ा मिला हुआ है 🙂

    गंगा और उससे जुड़नेवाली अन्य नदियों की जानकारी के लिए आभार। मुझे तो इनका पता नहीं था॥

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  8. अच्छा लाछ्यागिरी यहीं है ???

    वाह…

    सचमुच ,यायावरी में जो आनंद है,वह और किसी चीज में नहीं…

    आदमी जिस दिन सिर्फ यही सोच ले कि मनुष्य का मूल तो एक ही है,फिर कहीं कोई बाउंड्री नहीं बचेगी…

    काश कि ऐसा हो पाता…

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  9. सरपत को लेकर मैंने भी एक पोस्ट लिखी थी। मनमोहक वातावरण में जिस समय सरपतों की तस्वीरें खींच रहा था उस पल एकाएक कुछ पल के लिये अपने को बिसर गया था।

    उस मनमोहक माहौल की तस्वीरें इस लिंक पर देखी जा सकती हैं.

    http://safedghar.blogspot.com/2010/11/blog-post_30.html?

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