आज सवेरे सब यथावत था। सूरज भी समय पर उगे। घूमने वाले भी थे। घाट पर गंगाजी में पानी कुछ बढ़ा हुआ था। वह भैंसासुर की अर्ध-विसर्जित प्रतिमा पानी बढ़ने के कारण पानी में लोट गई थी।
किनारे पर पण्डा यथावत संकल्प करा रहे थे कार्तिक मास का। पास में सनीचरा रहता था कऊड़ा जलाये। आज वह नहीं था। एक और आदमी कऊड़ा जलाये था।
सनीचरा के सृजक नहीं रहे। “रागदरबारी” सूना है। सनीचरा भी जाने कहां गया आज!
शनीचरा प्रधान: स: एमपीयो: बन गईल है।
आजकल ओकर नवकंज लोचन कंजमुख कर कंज पदकंजारूणम होत बाटे।
LikeLike
दोनों की ही अनुपस्थिति दुख दे रही है ……
LikeLike
शुक्ल जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
LikeLike
श्रीलाळ शुक्ल जी को श्रद्धांजलि॥
LikeLike
ओह!!
LikeLike
सनीचरा से उसके सृजक की स्मृति जुड़ जाना अनिवार्य ही तो था …
श्रद्धांजलि !
LikeLike
sahitya ke aakash se……………..ek chmakta sitara
‘Raagdarbari’ ke rachyita nahi rahe
vinamra shradhanjali
LikeLike
विनम्र श्रद्धांजलि।
LikeLike
विनम्र श्रद्धांजलि.
LikeLike
uske anupasthiti ka hetu……kya pata kya bhed ho……….
pranam.
LikeLike
भेद तो शायद कोई नहीं है, यह तो मन है जो अनुपस्थिति को शुक्ल जी से जोड़ कर देख रहा है।
मन ऐसे ही जोड़ता है घटनाओं को।
LikeLike
sayad yahi bhaw the jo na khulne se ‘bhed’ laga ho…..
pranam
LikeLike