लता और प्रदीप ओझा

होशंगाबाद से लौटते समय मेरे पास एक काम था – प्रदीप ओझा के घर जाना। प्रदीप भोपाल रेल मण्डल में वरिष्ठ मण्डल परिचालन प्रबन्धक हैं। जब मैं उत्तर-मध्य रेलवे में मालगाड़ी परिचालन का कार्य देखता था, तो प्रदीप इलाहाबाद मण्डल के वरिठ मण्डल परिचालन प्रबन्धक हुआ करते थे। वे एक ऐसे अफसर हैं जो सोते-जागते ट्रेन परिचालन में जीते हैं। मैं अपने विषय में कुछ ऐसा ही सोचता हूं, पर मुझसे वे कई गुणा बेहतर जीते हैं ट्रेन परिचालन में।

प्रदीप की पत्नी – लता ओझा (या रुचि ओझा) मेरी फेसबुक मित्र हैं। उनके लाइक्स और उनकी टिप्पणियों का सदैव इन्तजार रहता है। उनके घर में वनस्पति और जीवों/पक्षियों का अरण्य है। उनकी कविताओं में गज़ब की सेंसिटिविटी है। पर कुछ लोग महसूस करने से रह जाते होंगे – हिन्दी की उनकी कवितायें रोमनागरी में आती हैं फ़ेसबुक पर; जिन्हे पढ़ने के लिये अतिरिक्त एकाग्रता की आवश्यकता होती है। शायद कुछ लोगों को फ्लो नहीं बनता होगा। पर होती हैं वे बहुत सहृदय।

मैने लता और प्रदीप से कह दिया था कि उनके यहां आऊंगा और लगभग शाम आठ बजे पंहुच जाऊंगा। होशंगाबाद से सड़क वाहन छोड़ गोण्डवाना एक्स्प्रेस से लौटने के कारण मैं  समय की डेडलाइन में पंहुच पाया उनके घर।

प्रदीप की पदोन्नति और उसके बाद उनकी इलाहाबाद वापसी की प्रतीक्षा बहुत से लोग कर रहे हैं। मैं भी सोचता हूं कि मेरी इलाहाबाद की माल यातायात परिचालन वाले पद पर – जिस पर लगभग छ साल बैठना मैं हांफते-झींखते निभा पाया था, और मेरी मात्र यही उपलब्धि थी कि इतना समय निभा पाया; प्रदीप उस पद को कहीं बेहतर ढंग से चलायें/निबाहें। शायद प्रदीप को भी उसकी प्रतीक्षा है।

हम लोगों के मुख्य परिचालन प्रबन्धकों के सम्मेलन का आयोजन करने में प्रदीप और उनकी टीम की महती भूमिका रही है। एक एक चीज पर बारीकी से ध्यान दिया उन्होने। कोई कमी या अव्यवस्था नहीं दिखी उनके आयोजन में। प्रदीप का यह ईवेण्ट मैनेजमेण्ट का पक्ष मैने पहले नहीं देखा था। मुझे यकीन है कि यह उन्होने अपनी पत्नी लता से सीखा होगा।

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लता इलाहाबाद/झूंसी के पास की रहने वाली हैं। मैने कभी जिज्ञासा व्यक्त नहीं की, पर देखें तो लता-प्रदीप मेरे किसी न किसी प्रकार से सम्बन्धी हो सकते हैं। इलाहाबाद के देहाती इलाके में ब्राह्मणों की आबादी, आपस में ही होने वाले सम्बन्धों के कारण एक व्यापक परिवार की तरह दिखती है। [यह अलग बात है कि वे सम्बन्धों पर जोर न दे कर पारस्परिक सिरफ़ुटव्वल पर ज्यादा कन्सन्ट्रेट करते हैं! :lol: ]

हम उनके बरामदे में बैठे। अंधेरा हो गया था। अत: उनका लॉन धुंधलके में ही दिखा। पर जो दिखा, उससे लता कि सुरुचि की छाप जबरदस्त दिखी।

… सर, इलाहाबाद से आते समय मुझे अपने कई गमले छोड़ कर आने पड़े। उन पौधों को छोड़ कर आने में बहुत कष्ट हुआ। और ये आप जो साइकस का गमला देख रहे हैं, न! उसे लाने में तो मुझे इनकी (प्रदीप की) बहुत डांट सुननी पड़ी थी।

मैने देखा – – गमला कांक्रीट का था और बहुत बड़ा था। प्रदीप ने बताया कि इलाहाबाद से लाते समय कई लोगों ने मिल कर उठाया था उसे। यह भी ध्यान रखा कि टूट न जाये। भोपाल से इसे ले जाना अपने आप में बड़ा प्रॉजेक्ट होगा!

मैं प्रदीप के बच्चों – बेटा और बेटी से भी मिला। बच्चे विनम्र और तहज़ीबदार थे। फिर कभी समय मिला तो उनके साथ समय व्यतीत करूंगा।

लता ने बहुत विस्तार से बताया कि घर में किस ओर कौन सा पौधा या वृक्ष है। किस पेड़ पर कौन चिड़िया रहती हैं। किसमें कितने फूल आये थे… धुंधलका होने के कारण मैं अपनी नोटबुक नहीं खोल पाया, अन्यथा विवरण देता आप को! (एक अच्छे ब्लॉगर के पास नोटपैड उपलब्ध होना चाहिये। मेरे पास बहुधा नहीं होता। यह अच्छी बात नहीं है!)

मेरा सैलून परीक्षण के लिये गया हुआ था। अत: स्टेशन पर इन्तजार करने की बजाय प्रदीप और लता के साथ ही समय गुजारते हुये एक कप चाय और पी। करीब डेढ़ घण्टा रहा उनके घर। चलते हुये दो-तीन चित्र लिये। उन्हे इस पोस्ट पर लगा दे रहा हूं।

अगली बार देखता हूं, ओझा दम्पति से कहां मिलना होता है – भोपाल में या इलाहाबाद में!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

7 thoughts on “लता और प्रदीप ओझा

  1. शीर्षक देखकर तो मैं चौंक गया कि अमूमन यह आपका विषय नहीं देखा कभी!! ओह सॉरी, भूल गया यह बताना कि मेरे मन में क्या विचार आया. इस शीर्षक से जो पहली बात मेरे मन में आई, वो थी “ऐ मेरे वतन के लोगो”.. कवि प्रदीप का लिखा और लता जी का गाया एक अमर गीत!
    आपका मिडास टच लोगों के व्यक्तित्व में सुनहरा निखार ला देता है! ओझा दम्पति को मेरी शुभकामनाएँ!!

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    1. कवि प्रदीप के गीत तो बहुत सुने हैं। “कितना बदल गया इन्सान” तो बारम्बार अहसास दिलाता है संसार के बदलाव की नकारात्मकता का…

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  2. Ojha is one of the few officers who can change the flow of traffic, has the potential to make a dead railway run. He has done so in Bhopal. His dedicated work in Allahabad division as SDOM made him nearly indispensable for the division. He will do outstanding work as CFTM also. Wish him all the best.

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  3. Sadar pranaam sir.. ye humaare liye avarneeya anubhav rahaa.. aapka snehashish pa hum bahut prasann hain. Andhere ke kaaran kuchh hi ped paudhe dikha saki , us utsaah mein to shaayad aapko apni chhoti si bagiya ke ek ek paudhe se mila deti :) Asha hai jaldi hi aisa suavsar prapt hoga .

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