शैलेश पाण्डेय, गंगोत्री और साधू

ऋषिकेश में शैलेश पाण्डेय
ऋषिकेश में शैलेश पाण्डेय

शैलेश पाण्डेय ने पिछले वर्ष उत्तराखण्ड में प्राकृतिक आपदा के बाद गुप्तकाशी के आगे रेलगांव-फाटा के पास मन्दाकिनी नदी पर रोप-वे बनाया था। लगभग सप्ताह भर वहां रहे थे और ग्रामीणों की बहुत सहायता की थी। उस घटना को एक साल हो रहा है।

अभी कुछ दिन पहले शैलेश ने बताया था कि उनका इरादा घर से एक दो दिन में निकल पड़ने का है और अभी तय नहीं है कि कहां जाना है।

यात्रा प्रारम्भ। अमेठी के पास बस में।
यात्रा प्रारम्भ। अमेठी के पास बस में।

दस तारीख को ह्वाट्सएप्प पर उनके द्वारा अमेठी के पास एक बस का चित्र मिला; जिससे पता लगा कि यात्रा दो-तीन दिन पहले प्रारम्भ हो गयी थी।

उनके अगले पड़ाव – सीतापुर का पता चला। फिर ऋषिकेश। वहां से रास्ते में पड़े  नरेन्द्रनगर, टिहरी गढ़वाल में चम्बा और फिर उत्तरकाशी।  उत्तरकाशी से आगे की यात्रा – रास्ते में स्थान लाट सेरा, हरसिल और अन्त में गंगोत्री। कुल यात्रा 1500किलोमीटर से अधिक की है। गूगल मैप मे‍ यात्रा का रूट यह रहा – shailesh journey यात्रा की विषमतायें और विशेषतायें तो शैलेश ही बता सकते हैं, मुझसे तो कुछ ही ह्वाट्सएप्प के माध्यम से आदान-प्रदान द्वारा ज्ञात हुआ।

ऋषिकेश
ऋषिकेश

शैलेश ने ह्वाट्सएप्प पर लिखा था कि “बहुत अच्छा लग रहा है। तीन दिन हो गये हैं और किसी भी बात ने न मुझे उद्विग्न किया है न मुझे क्रोध आया है। आनन्द की अनुभूति..। उन लोगों के बीच अच्छा लग रहा है जो जिन्दगी जीने के लिये हर क्षण जद्दोजहद करते हैं।”

शैलेश 11 जून को ऋषिकेश पंहुच गये। उत्तरप्रदेश की तरह वहां भी बिजली नहीं थी। पहाड़ के पीछे से निकलता चांद पूरे अंधेरे से झांकता दिख रहा था।

रात में भोजन का  जो चित्र भेजा शैलेश ने, उससे मेरा भी मन हो उठा कि कितना अच्छा होता अगर मैं भी वहां होता… अगले दिन भी सवेरे ऋषिकेश का चित्र था। सवेरे नाश्ते में पराठा-छोले थे। शैलेश ने लिखा – “आड़ू और आलूबुखारा खूब मिल रहा है।”  साथ में कथन भी कि हरसिल के लिये निकल रहे हैं वे लोग – यानी वे और हर्ष। हरसिल यानी गंगोत्री की ओर।

ऋषिकेश में रात का भोजन करते हर्ष।
ऋषिकेश में रात का भोजन करते हर्ष।

ऋषिकेश से बरास्ते उत्तरकाशी; गंगोत्री के रास्ते के कई चित्र भेजे शैलेश ने। यह भी लिखा कि टिहरी के कई वनों में आग लगी हुयी है। अभी आग है और आने वाली वर्षा में भूस्खलन होगा। पता नहीं आग और भू-स्खलन में कोई रिश्ता है या नहीं…

दूर, टिहरी के जंगल में लगी आग।
दूर, टिहरी के जंगल में लगी आग।

उसके बाद उत्तरकाशी पड़ा, फिर मनेरी डैम, आगे लाटसेरा और फिर गंगोत्री। होटल में डबल रूम मिल गया 300 रुपये में! शैलेश ने बताया कि उनका कुल खर्च गंगोत्री पंहुचने का 500-600 हुआ होगा। …

उत्तरकाशी
उत्तरकाशी

यायावरी के लिये बहुत पैसे की जरूरत नहीं है। और आपके पास मोबाइल का कैमरा और नोट्स लेने के लिये एक स्क्रिबलिंग नोटबुक हो तो कोई खरीद कर सूटकेस में बोझ भरने की भी जरूरत नहीं भविष्य के लिये यादें संजोने को।

मैने शैलेश को लिखा कि काश मेरा स्वास्थ्य ठीक होता इस प्रकार की यात्रा के लिये। शैलेश ने कहा कि स्वास्थ्य को बहुत लाभ मिलेगा, अगर आप यहां आयें!

गंगोत्री में होटल।
गंगोत्री में होटल।

 

अगले दिन शैलेश ने अपना और हर्ष का धोतियां लपेटे उस स्थान का चित्र भेजा, जहां राजा भगीरथ ने (गंगावतरण के लिये) तपस्या की थी। महान तपस्वी। काश गंगा-शुद्धिकरण वाले गालबजाऊ लोग उनमें अपना आदर्श तलाशते। वे लोग इस प्रकार यायावरी कर वहां जायें तो शायद गंगाजी को पुनर्जीवित करने की भावना से ओतप्रोत हो सकें।

हर्ष (बांये) और शैलेश - वहां जहां भगीरथ ने गंगावतरण के लिये तपस्या की थी।
हर्ष (बांये) और शैलेश – वहां जहां भगीरथ ने गंगावतरण के लिये तपस्या की थी।

“भैया, यहां से वापस आने की तनिक भी इच्छा नहीं हो रही।” शैलेश ने संदेश में लिखा। “मन में ऐसे प्रश्न उठ रहे हैं, जिन्हे लोग आध्यात्म कहेंगे और उन प्रश्नों के उत्तर भी शायद यहीं मिलेंगे।”

अगले दिन (आज 15 जून को) शैलेश ने बताया कि वे एक नागा साधू से मिले, जंगल में एक गुफा में। वहां सामान्यत: कोई जाता नहीं। निश्छल और बच्चे से व्यक्ति। उन्हे मालुम था कि आज मोदी भूटान जा रहे हैं। गुफा दुर्गम्य अवश्य थी, पर मोबाइल नेटवर्क वहां भी था। बैटरी कैसे चार्ज करते होंगे, यह मैने नहीं पूछा। शैलेश से मिलने पर यह जिज्ञासा रखूंगा। साधू बाबा ने शैलेश और हर्ष को चाय भी पिलाई।

दुर्गम जंगल में साधू की गुफा में शैलेश!
दुर्गम जंगल में साधू की गुफा में शैलेश!

मैं वाराणसी वापस पंहुचने पर शैलेश से इन सज्जन के बारे में विस्तार से पूछूंगा जो ऐसे दुर्गम स्थान पर रहते हैं… आगे शायद जो शैलेश बतायें, वह एक पोस्ट का रूप ले। पता नहीं। आजकल ब्लॉग कम ही लिखा, देखा जा रहा है…

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

8 thoughts on “शैलेश पाण्डेय, गंगोत्री और साधू

  1. सादर प्रणाम।
    कितना रोचक यात्रा वृतांत। आपका स्वास्थ्य फिर गड़बड़ हो गया क्या?

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  2. अपने को कथा से निकाल बाहर कर इसे बाँचा … जो अनुभूति हुई वो सत्य में इस यात्रा को रोचक बनाती थी पढने में जो सुख है वो शायद लिखने में नहीं होगा …

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  3. मेरे लिए आपकी पोस्ट छोड़ना मुश्किल होता है, कमेन्ट चाहे न भी करूँ, एकबारगी पढ़ता ज़रूर हूँ.

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  4. शैलेश की पिछले साल की पोस्टें बांची थीं। यह पोस्ट भी उत्तम है।
    ब्लॉग लिखे भले कम जा रहे हैं लेकिन पढे जा रहे हैं। लिखते रहिये।

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  5. औरों का पता नहीं, मेरे लिए आपकी पोस्ट छोड़ना मुश्किल होता है, कमेन्ट चाहे न भी करूँ, एकबारगी पढ़ता ज़रूर हूँ.
    आपने सही कहा, घुमक्कड़ी के लिए ज्यादा खर्च करने की ज़रूरत नहीं. ऐसे ही हमारे नीरज जाट भी हैं !!

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  6. ये बात आप सही कह रहे हैं कि ब्लॉग आज कल कम देखा जा रहा है लेकिन ब्लॉग पर किसी घंटना या व्यक्तित्व के बारे में सही से पढ़ा जा सकता है , जो कि फेसबुक पर संभव नहीं है। शैलेश जी का प्रयास सराहनीय है , आप के माध्यम से उनके बारे में भी पढने को मिल जाता है तो आप को भी धन्यवाद। मुझ जैसे इंसान को तो बहुत हिम्मत और मनोबल चाहिए शैलेश जी की तरह बनने के लिए ।

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