वह नौजवान महिला थी। हिजाब/बुर्का पहने। श्री सुरेश प्रभु, रेल मंत्री महोदय की जन प्रतिनिधियों से भेंट करने वाले समूह में वह भी थी। अकेली महिला उन प्रतिनिधियों में। वाराणसी रेल मण्डल के सभागृह में उन्हे पिछले सप्ताह बुलाया गया था। एक ओर मंत्री महोदय, पूर्वोत्तर और उत्तर रेलवे के महाप्रबन्धक और अन्य अधिकारी बैठे थे और उनके सामने जन प्रतिनिधि।

महिला की आवाज में जोश था। वह अपना कथ्य लिख कर लाई थी। पर वह पढ़ते कहते समय किसी भी कोण से नहीं लगता था कि वह मात्र पढ़ने की औपचारिकता कर रही है। वह मंजी हुयी वक्ता नहीं थी, पर शब्दों की स्पष्टता, उनमें वजन, उसका आत्मविश्वास और कम उम्र – कुल मिला कर बहुत प्रभाव डाल रहे थे बैठक में। उसे कहने का पूरा मौका मिला। वह पहले खड़ी हो कर बोलने लगी, पर मंत्री महोदय ने उसे इत्मीनान से बैठ कर अपनी बात रखने को कहा। इससे उसमें आत्म विश्वास बढ़ा ही होगा।
मऊ नाथ भंजन और उसके आस पास की समस्यायें रखीं उस महिला ने।
सब को सुनने के बाद मंत्री महोदय ने जन प्रतिनिधियों को सम्बोधन किया। उनके कहे बिन्दुओं पर रेल प्रशासन का कथन और मंत्री महोदय की अपनी सोच वाला सम्बोधन। उन दो दिन के वाराणसी प्रवास के दौरान मैने जो देखा श्री प्रभु को, उसके अनुसार उन्हे मैं मेवरिक ( maverick – an unorthodox or independent-minded) मंत्री कहूंगा। उनके भविष्य में सफल मंत्री प्रमाणित होने पर यद्यपि निश्चितता से नहीं कहा जा सकता, पर एक दमदार सट्टा जरूर लगाया जा सकता है!
उस नौजवान महिला को सम्बोधित कर मंत्री जी ने उसे राजनीति ज्वाइन करने को कहा। यह भी कहा कि उस जैसे व्यक्ति की राजनीति को आवश्यकता है। निश्चय ही, इससे वह महिला गदगद हो गयी। उसने कृतज्ञता व्यक्त की और आश्वासन दिया कि वह ऐसा करेगी और पूरी निष्ठा से मेहनत करेगी (राजनीति के क्षेत्र में)।
भाजपा सरकार में एक वरिष्ठ मंत्री। मेवरिक। एक नौजवान महिला को प्रेरित कर रहा है राजनीति ज्वाइन करने को। राजनीति, जिससे बहुत से बिदकते हैं। और वह भी एक मुस्लिम महिला को – शिवसेना/भाजपा के मंत्री द्वारा। … अखबार के लिये बहुत जानदार खबर हो सकती थी। पर वहां शायद पत्रकार नहीं थे। या पत्रकार लोगों को थेथर न्यूज से आगे कुछ बुझाता ही नहीं?!
राजनीति में संभवतः ऐसे ही उत्साही और स्वतन्त्र विचारशीलता की आवश्यकता है, साथ ही उसे वाणी देने के लिये ओजस व्यक्तित्वों की।
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यकीनन सत्ता के शिखर पर बैठे लोगों का इस तरह का प्रोत्साहन अच्छा असर डालेगा।
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इस पूरे लेख में काफी महत्वपूर्ण बातें लगीं । एक मंत्री का लोगों की समस्याओं में सचमुच रुचि लेना । एक मुस्लिम महिला का इस तरह अपनी बात सुव्यवस्थित रीति से समुदाय में कहना। और मीडिया की अनुपस्थिति। पर आपने उनका काम ब्लॉगर्स के लिये तो कर ही दिया।
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पूरी रपट पढते हुये जो बात मेरे मन मस्तिष्क में चल रही थी वो आपने अंतिम पंक्तियों में बयान कर दिया. अच्छा लगा उस महिला का आत्मविश्वास के साथ अपना वक्तव्य प्रस्तुत करना और मंत्री महोदय का उसको ध्यान से सुनना.
लेकिन ऐसा क्यों है कि किसी भी अच्छे वक्ता का भाषण सुनकर हम उसे राजनीति में आने/जाने की सलाह देने लगते हैं. राजनीत बतौर पेशा बुरा नहीं है, लेकिन ऐसा क्यों कि उसकी “बात” सुनकर हम उसे किसी और पेशे से जोड़कर क्यों नहीं देख पाते! एक अच्छा शिक्षक, एक समाज सुधारक, एक समाज सेवी, एक कुशल प्रशासक, एक सफल उद्योगपति और भी कुछ!
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इस बात की कितनी प्रायिकता है कि मंत्री महोदय को यह एहसास ही न हुआ हो कि वह महिला पहले से ही राजनीति में है?
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पत्रकारिता में सस्ते श्रम ने क्वालिटी को लील लिया है। अब इस सामानान्तर मीडिया से ही उम्मीद है। जो स्वतंत्र लिखेंगे और कदाचित उससे पैसे भी आने शुरू हों तो नागरिक पत्रकारिता के रूप में हमें नया वरदान मिल सकता है।
आपकी इस रिपोर्ट लिए साधूवाद।
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