प्रयागराज, लाइव सर्टीफिकेट और बैंक अधिकारी श्रीमती दिव्या गौड़ से मुलाकात

लाइव सर्टीफिकेट हेतु प्रयागराज की यात्रा

रिटायर्ड सरकारी पेंशनर्स के लिये बैंक नवम्बर के महीने में तीर्थ स्थान सा होता है। वहां जा कर अपने जीवित होने का प्रमाण देना अनिवार्य वार्षिक कर्मकाण्ड है। मेरे घर में मेरे पिताजी और मैं – दो व्यक्ति सरकारी पेंशनर हैं। मेरा पेंशन खाता वाराणसी में है और पिताजी का तेलियरगंज, प्रयागराज में। अत: दोनों को इस तीर्थ यात्रा पर जाना होता है। चूंकि मेरे पिताजी इस यात्रा के लिये बहुत सक्षम नहीं हैं; उनको ले जाने का दायित्व भी मेरे ऊपर है।

पिताजी के शतायु होने की मैं कामना रखता हूं – सो उसके आधार पर अगले 15 साल उनके लाइव सर्टीफिकेट अरेंज करने के दायित्व मुझे निर्वहन करने के लिये तैयार रहना है।

पिताजी सामान्यत: याद रखते हैं इस कर्मकाण्ड को। पर इस साल वे लगता है भूल गये थे। उनका डिमेंशिया उत्तरोत्तर बढ़ रहा है। इसलिये उन्हे ले कर मैने इलाहाबाद (सॉरी, प्रयागराज) की यात्रा करने में कोताही नहीं की।

प्रयागराज इस समय अर्धकुम्भ पर्व की तैयारी के कार्यों के कारण अवरोधों से पटा पड़ा है। अगर पहले से यह आभास होता तो वहां जाने की बजाय आधार अथॉरिटी के जीवनप्रमाण नामक ई-अनुष्ठान की शरण में जाना पसन्द करता।

भोलाराम जी (रेलवे में जो पहले मेरे इलाहाबाद सिटी के मुख्य ट्रेफ़िक इन्स्पेक्टर हुआ करते थे और अब मेरे मित्र हैं) के साथ मैं तेलियरगन्ज स्टेट बैन्क के दफ़्तर पंहुचा। भोलाराम जी पिताजी को सहारा दे कर ब्रान्च के चीफ़ मैनेजर के चेम्बर में ले कर गये। पिताजी को चलने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती है, पर उन्हें कोई तवज्जो देने लगे तो ज्यादा ही झूल जाते हैं। वैसा ही बिहेव कर रहे थे।

बैंक अधिकारी श्रीमती दिव्या गौड़ से मुलाकात

मुख्य शाखा प्रबन्धक थीं श्रीमती दिव्या गौड़। मैं अपेक्षा करता था कि वे कोई अधेड़ महिला होंगी – पचास पचपन की उम्र की। खिजाब से उम्र कम करने का अर्धसफल प्रयास करने वाली। पर वे तो मुझे एक लड़की जैसी लगीं। मुझे लगा कि मेरे सफ़ेद बालों या मेरे बारे में पिछले शाखाप्रबन्धक अग्रवाल जी के फोन के कारण उन्होने हमें समुचित आदर दिया; पर कुछ ही देर में मुझे अपना यह आकलन व्यर्थ लगने लगा; जब हर एक आगंतुक के साथ उनका व्यवहार अत्यन्त सज्जनता भरा पाया।

हमें उन्होने अपने चेम्बर में बैठने का स्थान दिया। कोई व्यक्ति हमारे लिये पानी भी रख गया। उन्होने हमारी आवश्यकताओं के अनुसार उपयुक्त फार्म मुहैय्या करवाये और इत्मीनान से उन्हें भरने को कहा।

मैं सोचता था कि चेम्बर में घुसते ही शाखाप्रबन्धक हमें किसी अन्य कर्मचारी/अधिकारी के पास भेज कर छुट्टी पा जायेंगे या फार्म दे कर भर कर लाने को कहेंगे। पर दिव्या जी का यह व्यवहार सुखद लगा। हमें पिताजी का केवाईसी भी अपडेट करना था, नेटबैंकिंग और एटीएम आदि की सहूलियतें भी चाहियें थीं। अत: उनके चेम्बर में हमें सवा-घण्टा लगा। इस दौरान उन्होंने हमारी पूरी सहायता की।

दिव्या जी ने मुझे बताया कि “जीवनप्रमाण” द्वारा आधार आर्धारित लाइव सर्टीफ़िकेट स्वत पेंशनर के पेंशन अकाउण्ट में दर्ज हो जाता है। उसके बाद उस सर्टीफ़िकेट को बैंक में हार्डकॉपी/सॉफ्टकॉपी में भेजने देने की आवश्यकता नहीं। पिछले दो साल मैने जीवनप्रमाण का ही प्रयोग किया था, पर उसकी प्रति बैंक मैनेजर तक पंहुचाने की मशक्कत भी की थी।

मेरे ख्याल से आधार अथॉरिटी यह क्लेरीफिकेशन दे दे तो बहुत से पेंशनर व्यर्थ में बैंक में लाइन लगाना भी बन्द कर दें और बैंक का काम भी कम हो सके।

मैं फार्म भर रहा था; पिताजी से उपयुक्त हस्ताक्षर करवा रहा था। एकाध जगह फोटो भी लगाने पड़े। इस बीच दिव्या जी के चेम्बर में आने वालों का तांता लगा रहा। बहुत से लोग नवम्बर महीने में अपने लाइव सर्टीफिकेट के सन्दर्भ में आ रहे थे। कुछ लॉकर्स ऑपरेट करना चाहते थे। एक दो लोन वाले थे। कई अजीबोगरीब समस्याओं वाले थे – उनके पास पासबुक, जरूरी कागजात आदि नहीं थे, पर वे बैंक की सुविधा चाहते थे। एक महिला कमरे में आते ही बोलने लगी – उसका ट्रेन का टिकट कैंसिल हो गया है। बम्बई में उसे लाइव सर्टीफ़िकेट देना है। पीपीओ नम्बर वहां लाकर में रखा है। यहां वह किसी तरह लाइव सर्टीफिकेट दर्ज कराना चाहती है। उस महिला का आशय समझने में भी समय लगा। मेरे ख्याल से कोई और बैंक अधिकारी पूरी बात सुने बिना उस महिला को बम्बई जा कर कार्रवाई करने को कहता। पर दिव्या जी ने बड़े धैर्य से उस महिला को सुना और समाधान बताया।

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दिव्या गौड़, मुख्य शाखाधिकारी, स्टेट बैंक, तेलियरगंज

मैने यह भी पाया कि बेंक के अन्य कर्मचारी जब अपने स्तर पर समाधान नहीं कर रहे थे, तो कस्टमर उन्हीं को बारम्बार आग्रह करने की बजाय शाखा प्रबन्धक जी के पास आना बेहतर समझ रहे थे – यहां उनकी बात धैर्य से सुनी जा रही थी और समाधान भी हो रहा था। … इस गतिविधि के कारण दिव्या जी को एक क्षण के लिये भी खाली नहीं देखा मैने। इण्टेंसिव वर्क-एक्टिविटी थी उनके टेबल पर। कुछ सेकेण्ड आगन्तुकों से बचते भी थे तो वह डेस्कटॉप पर बैंकिंग विषयक काम करने में लग जा रहे थे। और कीबोर्ड पर उनकी उंगलियां भी बड़ी दक्षता से चल रही थीं। एफ़ीशियेंसी पर्सोनीफाइड!

मैने दिव्या जी से पूछा – करीब 50 लोग आये होंगे उनके पास पिछले घण्टे/सवा घण्टे में। उनमें से 30प्रतिशत से लॉजिकली (तार्किक रूप से) अभद्र हुआ जा सकता था – वे अभद्रता डिजर्व करते थे। वे निरर्थक पेस्टरिंग (pestering) कर रहे थे। उन सभी से rude क्यों नहीं हो सकती थीं वे?

दिव्या जी ने उत्तर दिया कि यह उनकी प्रवृत्ति में नहीं है या फिर आज उनकी तबियत इतनी ठीक नहीं है कि लोगों पर चिल्लाया जाये। वैसे (बकौल उनके) यह तो है कि उनके नैसर्गिक व्यवहार में (नारी होने के कारण) चिल्लाना-डांटना आदि नहीं है।

मैं यद्यपि उनके कहे को समझ रहा था, पर मेरे सामने अत्यन्त अभद्र, चीखने वाली, लोगों की इज्जत उतार लेने वाली महिला अधिकारियों के उदाहरण भी हैं। वे भी (दिव्या जी जैसी) इण्टेलिजेण्ट, कार्यकुशल और बहुत सीमा तक लोगों को प्रभावित करने वाली थीं। पर उनका ब्लड प्रेशर निश्चय ही अधिक शूट करता होगा। वे अनिद्रा, मधुमेह और अन्य (राजसिक) बीमारियों से ग्रस्त होंगी। मेरे ख्याल से शान्त स्वभाव के कारण दिव्या जी अपना और सामने वाले का भी, रक्तचाप तो सामान्य करने में सक्षम हैं।

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रवि सुब्रह्मण्यम की पुस्तक

मैने हाल ही में रवि सुब्रह्मण्य़म के बेंकिंग बैकग्राउण्ड के उपन्यास पढ़े हैं। मेरे ख्याल से दिव्या जी जैसे चरित्र को ले कर भी एक सशक्त उपन्यास बुना जा सकता है। महिला अधिकारी, जो सरल है, कुशल है, व्यवहार में मृदु है और (बहुत सम्भव) बेंकिंग क्षेत्र में शीर्ष पर पंहुचने का प्लॉट उनके पर्सोना को ले कर बुना जा सकता है। चन्दा कोछड और उषा अनन्तसुब्रह्मण्य़म की करीयर तो धुंधली हो गयी है, पर कोई सफल और पूर्णत: नैतिक चरित्र भी तो हो सकता है उपन्यास का।

(लोगों से सरल व्यवहार और फोन पर भी सज्जनता से बात करने से मैं अनुमान लगाता हूं कि दिव्या जी कुशल नेटवर्कर होंगी – वह गुण जो प्रबन्धन और नेतृत्व के शीर्ष पर ले जाने में सबसे महत्वपूर्ण होता है – और इस गुण के कारण सफलता के नये प्रतिमान बनाना उनके लिये सहज होगा।)

दिव्या जी ने बताया कि बैंक कस्टमर यहां (तेलियरगंज, प्रयाग में) तो फिर भी पर्याप्त सज्जन हैं, अन्यथा कई स्थान जहां सम्पन्नता हाल ही में आयी है और लोग काफी रस्टिक (rustic) हैं, वहां उन्हें डील करना बड़ी चुनौती होता है।

मैं उनसे असहमत होना चाहता था। मेरे गांव में जो बैंक की ब्रान्च है, जहां ज्यादातर कस्टमर बेचारी गरीब महिलायें हैं, बैंकिंग अशिक्षित – जो अपने मेट्रो शहरों में कामकाजी पतियों के मनी-ट्रान्सफर के इतजार में बैंक के चक्कर लगाती रहती हैं; उनके लिये दिव्या जी जैसे संवेदनशील बैंक अधिकारी की बहुत आवश्यकता है। हां, इन जगहों में कालीन, टान्सपोर्ट और अन्य बिजनेस से सम्पन्न हुये लोगों में जो उजड्डता, खुरदरापन, और वल्गैरिटी है, उनके बारे में दिव्या जी का आकलन सही हो सकता है।

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शाखा प्रबन्धक, स्टेटबैंक,तेलियरगंज, प्रयागराज

चलते चलते दिव्या जी से मैने यह स्वीकृति ले ली कि उनके विषय में सोशल मीडिया पर पोस्ट कर सकूं।

मैं तो बैंक में पिताजी का लाइव सर्टीफिकेट का काम सम्पन्न कर शाम तक अपने गांव लौट आया और अपनी भ्रमणज्ञान वाली माइक्रोब्लॉगिंग पोस्टें लिखने लगा; पर इस ब्लॉग पोस्ट को लिखने की तलब न रोक पाया। न लिखता तो यह प्रयागराज की विजिट और दिव्या जी से मुलाकात यूं ही स्मृति के गर्त में चली जाती। अब कम से कम ब्लॉग पोस्ट में सहेज तो दी है!


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “प्रयागराज, लाइव सर्टीफिकेट और बैंक अधिकारी श्रीमती दिव्या गौड़ से मुलाकात

  1. अच्छा लगा दिव्या जी के बारे में जानकर ! ऐसे अधिकारी सुखद अनुभूति की तरह होते हैं !

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  2. दिव्‍याजी नया भारत है, एक बड़ी फौज ऐसे लोगों की है, जो देश को नए ऊंचे स्‍तर पर शांति से लेकर जा रहे हैं। जहां अधिकांश लोग अब भी नेताओंं और ज्‍यूूडीशरी में समाधान को तलाशते हैं, उन्‍हें अभी कॉर्पोरेट का यह चेहरा दिखाई देना शुरू नहीं हुआ है।

    ठेका प्रथा से सरकारी से निजी की ओर का सफर अभी शुरू ही हुआ है, भविष्‍य में ऐसे दक्ष लोग बेहतर तरीके से स्‍वत: अधिकांश समस्‍याओं का समाधान बन जाएंगे।

    एक सार्थक पोस्‍ट…

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