मोकालू गुरू का चपन्त चलऊआ- पोस्ट पर री विजिट


यह मेरी ब्लॉगिंग के सबसे पुराने समय की पोस्ट है. सन 2007 में लिखी. उस समय भरत लाल मेरा बंगलों पियुन था. अपने गांव के किस्से मुझे सुनाया करता था. उसके किस्सों का भी प्रभाव था कि अंततः रिटायरमेंट के बाद उसी गांव – विक्रमपुर – में मैंने बसने का निर्णय लिया.

नेशनल हाइवे 19 (GT Road) के किनारे है गांव विक्रमपुर

भूत प्रेत, चुड़ैल, ओझा, सोखा का स्पेस गांव के जीवन में, मोबाइल और स्मार्ट फोन के युग में अभी भी है और उनका महत्व कम नहीं हुआ है. शिक्षा, मेडिकल सेवायें और औद्योगिक विकास अभी भी लचर हैं. जब तक वे ऐसे रहेंगे, ऑकल्ट का दबदबा बना रहेगा.

इस पोस्ट में बहुत से चरित्र, लगभग सभी गाँव के हैं या थे. मोकालू, भरत के चाचा, यदा कदा दिख जाते हैं. लोटन गुरू – पंडित विभूति नारायण दुबे – अपने प्रकार के विलक्षण व्यक्तित्व हैं. उनका क्षेत्र तंत्र और लोक कल्याण के बीच कहीं आता है. वे रामायण पाठ बहुत मधुर करते हैं.

यह पोस्ट मेरी प्रिय पोस्टों में है. मेरी समान्य प्रवृत्ति से इतर लिखी गई.

भरत लाल. चित्र 2007 का है.

भूत प्रेतों की आबादी को डील करने के लिये ओझाओं की डिमाण्ड – सप्लाई में जबरदस्त इम्बैलेंस है। ऐसा नहीं कि झाड़-फूंक वाले ओझा कम हैं। लोटन दूबे, लाखन बिन्द, जिंगालू, लाल चन्द (बम्बई रिटर्ण्ड), कलन्दर यादव, बंसी यादव, बंसी पासवान और मोकालू शर्मा कुछ ऐसे ओझा हैं जिनके नाम भरतलाल को याद हैं। और भी हैं। पर भूत-प्रेतों की जनसंख्या में बढोतरी के चलते ये कम पड़ रहे हैं।


भरतलाल का गांव इलाहाबाद-वाराणसी ग्राण्ड-ट्रंक रोड और पूर्वोत्तर रेलवे की रेल लाइन के बीच में स्थित है। सड़क पर चलते वाहनों की चपेट में आ कर और ट्रेन से कट कर आसपास के कई लोग कालकवलित होते हैं। इससे भूत-प्रेतों की संख्या सतत बढ़ती रहती है।

“लेटेस्ट भूत पापूलेशन में जो प्रमुख नाम हैं, वे हैं – शितलू, चेखुरी, झिंगालू, फुननिया, बंसराज क मेहरारू, गेनवां आदि। ताल (गांव के पास की निचली दलदली जमीन) पर एक चौदह साल के धोबी के लड़के का सर कलम कर हत्या की गयी थी। उसका सिरविहीन धड़ अभी भी रात में सफेद कपड़े धोता है। वह लेटेस्ट और मोस्ट सेनशेसनल भूत है।”


ऐसा भी नहीं है कि भूत बनने के बाद कोई परमानेण्ट गांव का निवासी हो जाये। हर साल भूत गोंठाये जाते हैं। एक ओझा अपने चेलों के साथ झण्डा, नारियल, गगरी में पानी आदि ले कर गांव का चक्कर लगाता है। इस परिक्रमा के अनुष्ठान में सारे भूत आ आ कर नारियल में समाते जाते हैं। उसके बाद उस नारियल को पितृपक्ष में ओझाओं का डेलीगेशन लेकर गया जाता हैं और वहां नारियल के साथ भूतों को डिस्पोज़ ऑफ कर वापस लौटता है।

पर भरतलाल का अनुमान है कि कुछ चण्ट भूत ओझा मण्डली को पछियाये गया से वापस चले आते हैं – जरूर। वर्ना कई एक दो दशाब्दियों के भूत अभी कैसे पाये जाते गांव में?

लेटेस्ट भूत पापूलेशन में जो प्रमुख नाम हैं, वे हैं – शितलू, चेखुरी, झिंगालू, फुननिया, बंसराज क मेहरारू, गेनवां आदि। ताल (गांव के पास की निचली दलदली जमीन) पर एक चौदह साल के धोबी के लड़के का सर कलम कर हत्या की गयी थी। उसका सिरविहीन धड़ अभी भी रात में सफेद कपड़े धोता है। वह लेटेस्ट और मोस्ट सेनशेसनल भूत है। उसका नाम भरतलाल को नहीं मालूम।

भूत-प्रेत (या उसका मालिक ओझा) जो ज्यादा उत्पात मचाता है, उसे दूर करने के लिये भी टेकनीक है। उस तकनीक को चलऊआ कहा जाता है। सिंदूर, अक्षत, गेंदा के फूल, घरिया में गन्ने का रस, आधा कटा नीबू, चूड़ी के टुकड़े, लौंग आदि लेकर नजर बचा कर किसी व्यक्ति या किसी दूसरे मुहल्ले/गांव पर चलऊआ रख दिया जाता है। एक ताजा चलऊआ मोकालू गुरू नें जिंगालू गुरू के कहने पर रखा।

सबसे बेस्ट क्वालिटी का चलऊआ हो तो उसे “चपंत चलऊआ” कहा जाता है। इसका परिणाम जल्दी आता है। मोकालू ने चपंत चलऊआ रखा था।

पर इस चपंत चलऊआ में कहीं कुछ मिस्टेक रह गयी। जहां यह चलऊआ रखा गया था, वह जीटी रोड पर था। उस जगह पर अगले दिन एक ट्रक के अगले दो चक्के निकल गये और गड़गड़ाते हुये खेत में चले गये। ट्रक ढ़ंगिला (लुढ़क) कर गड़ही (गहरी छोटी तलैया) में पलट गया। जिंगालू गुरू के क्लायण्ट को कष्ट देते भूतों पर चलने की की बजाय यह चलऊआ ट्रक पर चल गया।

जिंगालू गुरू बाद में किसी और प्रेत को साधते हुये रन-अवे ट्रेक्टर की चपेट में आ कर खुद प्रेत पॉपुलेशन में शामिल हो गये।

मोकालू गुरू; लोटन दूबे, गांव के ओझा-इन-चीफ के असिस्टेण्ट हैं। साधना में भवानी उनकी जबान पर तो आ गयी हैं; पर अभी बोली नहीं हैं। मोकालू जब ट्रांस (trance – मोहावस्था, अवचेतन, मूर्छा, तन्मयावस्था) में आ कर “बोल मण्डली की जै” बोल देंगे तो भवानी उनपर सिद्ध हो जायेंगी। तब वे इण्डिपेण्डेण्ट ओझाई करने लगेंगे।

अभी इंतजार किया जाये।

मोकालू गुरू.

पोस्ट दिसम्बर 2007 की थी, पर मोकालू गुरु अभी भी इंडिपेंडेंट ओझाई की पात्रता नहीं हासिल कर पाए हैं.

अभी भी इंतजार किया जाये.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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