पूर्वांचल में कोरोना प्रसार का प्रारम्भ है यह। #गांवकाचिठ्ठा

मई 20, 2020, गांव विक्रमपुर, भदोही।

लोग भारत के कोरोना प्रसार के आंकड़े प्रस्तुत करते हैं। प्रांत के भी आंकड़े देते हैं। महानगरों के आंकड़े भी परोसे जाते हैं। पर उत्तरप्रदेश एक समांग इकाई नहीं है। प्रांत के पूर्वी भाग की प्रकृति और अर्थव्यवस्था अन्य हिस्सों से अलग है। इसलिये, यहां कोरोना संक्रमण का प्रसार भी (सम्भवत: ‌) अलग प्रकार से होगा। मैंने इस धारणा के आधार पर भदोही के आसपास के वे जिले लिये, जिनमें संक्रमण के मामले अपेक्षाकृत अधिक संख्या में हैं। प्रयाग, मिर्जापुर, वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर और भदोही को चुना। नित्य इनके कुल कोरोना आंकड़े नोट करना प्रारम्भ किया। पिछले तीन दिन के इन जिलों के आंकड़े बताते हैं कि न केवल इन जिलों के मामले नित्य बढ़ रहे हैं; वरन अगले दिन बढ़ने की दर पिछले दिन बढ़ने की दर से ज्यादा है। अर्थात, मामले बढ़ने की दर भी बढ़ रही है। यह अलार्म है – स्पष्ट और तेज आवाज का अलार्म।

मैंने अपने पूरे परिवार – पत्नीजी, बेटा और उसकी पत्नी – को बुला कर यह समझाया। यह भी बताया कि लॉकडाउन 1.0 से ले कर अब तक जो रहा, वह तो एक प्रकार से ट्रायल था कोरोना से लड़ने के लिये। मॉक ड्रिल। हम लोग सोशल डिस्टेंस बनाना, मास्क पहनना और बार बार हाथ साफ करना – हैण्डवाश या सेनीटाइजर से – सीख गये हैं और कर भी रहे हैं। अब अतिरिक्त सतर्कता की जरूरत है। अभी तक चिन्ना पांड़े (पोती) को गांव के बच्चों के साथ एक घण्टा खेलने दिया जाता था, अब वह बंद करना है। घर के अंदर नौकरों का प्रवेश अब वर्जित रहेगा। घर के बाहर के परिसर में भी वे जो काम करेंगे, वह हाथ धो कर और मॉस्क का प्रयोग करते हुये ही होगा। हम रोज सतर्कता से कोरोना प्रसार का ध्यान से निरीक्षण करेंगे। अपनी कार्यप्रणाली जून के अंत में रिव्यू करेंगे।

प्रसार के आंकड़ों को देख कर एक भय और अनिश्चितता थी मेरे और मेरी पत्नीजी के मन में। एक बार यह निर्णय किया तो वह भय और अनिश्चितता ने एक्शन का रूप ले लिया। वह तो अच्छा है कि हम लोग पर्याप्त तैयार हैं और हमारे पास उपकरण तथा जरूरत की सामग्री पर्याप्त है। कोई हताशा या अफरातफरी नहीं है। अन्यथा रोज गांव में बाहर से आने वालों की खबर मिलती है और यह भी पता चलता है कि वे क्वारेण्टाइन में रहने का अनुष्ठान या तो नहीं कर रहे, या आधे अधूरे मन से कर रहे हैं। यह भी रोज अहसास होता है कि अगर तबियत खराब हुई तो बहुत बढ़िया सपोर्ट सिस्टम आसपास नहीं मिलने वाला। अपने को बचाने से बेहतर कोई तरीका नहीं है।

पूर्वांचल में प्रवासी आये हैं बड़ी संख्या में साइकिल/ऑटो/ट्रकों से। उनके साथ आया है वायरस भी, बिना टिकट। यहां गांव में भी संक्रमण के मामले परिचित लोगों में सुनाई पड़ने लगे हैं। इस बढ़ी हलचल पर नियमित ब्लॉग लेखन है – गांवकाचिठ्ठा
https://gyandutt.com/category/villagediary/
गांवकाचिठ्ठा

दलित बस्ती का राजा (उसका नाम है) पानीपत से आया है। उसने फोन कर बताया कि वह जब हरियाणा से चला तो टेस्ट करा कर रवाना हुआ। उसकी रिपोर्ट भी उसके पास है। रास्ते में भी दो बार जांच हुई। वह स्वस्थ महसूस करता है, पर अपने घर के एक कमरे में सेल्फ-क्वारेण्टाइन में है। उसका मामला तो सीधा और जेनुइन लगता है, पर कई हैं, जो बस आकर घर में रह रहे हैं और लापरवाही से इधर उधर घूमते फिरते हैं। एक व्यक्ति तो लेवल क्रासिंग पर दिखा था साइकिल लिये। दूसरे को बता रहा था कि वह क्वारेण्टाइन में है। वह दो गज दूरी रख रहा है दूसरों से। अर्थात उसे क्वारेण्टाइन और सोशल डिस्टेंसिंग का अंतर ही नहीं आता। या फिर वह दोनों को अपनी सुविधा अनुसार गड्डमड्ड कर दे रहा था।

साइकिल वाला नौजवान क्वारेण्टाइन में था, पर टहल रहा था!

गांव देहात में मुझे बच्चे अपनी अवस्था के अनुसार कम वजन के या कम लम्बाई ने नजर आते हैं। उनमें कुपोषण की समस्या व्यापक है। जैसा पढ़ने में आया है, कुपोषण भारत में अपने पड़ोसी देशों की अपेक्षा कहीं ज्यादा है। पक्का नहीं कह सकते कि कोरोना संक्रमण कुपोषित बच्चों पर किस प्रकार प्रभाव डालेगा। इस बारे में कोई पुख्ता अध्ययन मेरी नजर में नहीं आया। अगर बच्चे ज्यादा संक्रमित हुये और उनकी मृत्यु हुई तो यह गांव देहात के लिये बहुत हतोत्साहित करने वाली बात होगी। एक कुपोषित बच्चे का मामला, जिसे बार बार न्युमोनिया हो जाता था, और जिसपर हमने एक बार पूरे इलाज का खर्चा वहन किया था, का मामला तो हम जानते ही हैं। कुपोषित बच्चा अगर बार बार न्यूमोनियाग्रस्त हो जाता है तो कोरोनाग्रस्त होने की सम्भावना ज्यादा बनती है।

आज हमने घर में अनुशासन लागू किया है कि पोती चीनी (पद्मजा पाण्डेय) को अन्य बच्चों के साथ खेलने को नहीं मिलेगा – कम से कम अगले महीने के अंत तक।

अम्फान का चित्र। न्यूयॉर्क टाइम्स

एक तूफान बंगाल की खाड़ी में उठा है और आज वह बंगाल के तट को पार कर बंगाल/बांगलादेश में प्रवेश कर गया है। यह बताया जाता है कि सुपर साईक्लोन है। सन 1999 के बाद सबसे ज्यादा खतरनाक। मानो, कोरोना की आपदा कम थी कि एक तूफान (अम्फान नाम रखा गया है उसका) भी उसके साथ आ गया! मेरी बिटिया ने बोकारो से बताया है कि वहां अनवरत बारिश हो रही है। यहां उत्तर प्रदेश में तो हल्के बादल हैं। कल शायद मौसम में कुछ बदलाव आये। तूफान की दिशा जैसी बताई गयी है, उसका असर इस भाग में तो नहीं होना चाहिये। मौसम की स्थानीय जानकारी तो कल खुला आसमान बता रही है।

कल से मैं अखबार में जनपदीय खबरें भी पढ़ने लगा हूं। एक खबर मेरे बेटे की ससुराल की है। बबिता (मेरी पतोहू) के गांव धनावल, जिला मिर्जापुर में भी बम्बई से लौटा एक युवक कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। धनावल गांव बहुत बड़ा है। उसका वह हिस्सा जिसमें वह युवक पाया गया, को सील कर दिया गया है। गांव हॉटस्पॉट बन गया है। कुल मिला कर कोरोना, जो तीन महीना पहले चीन, इटली और ईरान में और महीना भर पहले भारत के मेट्रो शहरों और समृद्ध प्रांतों – पंजाब, गुजरात, दक्षिण के कुछ हिस्सों में सुनाई देता था; अब जानपहचान की जगहों में दिखने-उभरने लगा है। बहुत तेजी से फैला है यह संक्रमण और देश के इस भाग में, जहां स्वास्थ्य सुविधायें अत्यंत लचर हैं, परेशानी ज्यादा ही है!

मैंने बारह-चौदह किलोमीटर साइकिल चलाई

आज मैंने बारह-चौदह किलोमीटर साइकिल चलाई। हाईवे की सर्विस लेन पर चलता चला गया। जहां कोई नजर नहीं आता था (मैं पौने छ बजे सवेरे निकला था) वहां मैं बिना मास्क के चल रहा था। मास्क लगा कर मुँह गर्मी और उमस में अजीब सा उकता जाता है। अभी मास्क ज्यादा देर तक लगा कर रहने की आदत नहीं पड़ी! पर आदत तो डालनी ही होगी।    


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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