स्कूल बंद हैं तो घर में ही खोला एक बच्चे के लिये स्कूल

सात महीने हो गये। स्कूल बंद हैं। पहली से दूसरी में बिना परीक्षा लिये पंहुच गयी है पद्मजा (मेरी पोती)। कुछ समय ह्वाट्सएप्प पर स्कूल वालों ने होमवर्क देने और नोटबुक पर किये कार्य के उसी चैट में भेजे चित्र को जांचने का यत्न किया। पर वह सब ठीक से चल नहीं पाया। गांव में माता पिता बच्चों को पढ़ाने के लिये स्कूल का पर्याय नहीं बन पाये। उनके पास समय और काबलियत दोनो की कमी रही। अत: स्कूल बंद ही माने जा सकते हैं – उचित टेक्नॉलॉजी और संसाधनों के अभाव में।

पद्मजा के स्कूल की तुलना में सरकारी स्कूल तो और भी दयनीय दशा में हैं। गांव के सरकारी स्कूलों के बच्चे, तो छुट्टा घूम ही रहे हैं। आपस में आसपड़ोस के बच्चों में हेलमेल तो हो ही रहा है। वे अभी भी कोई कोरोना अनुशासन का पालन नहीं कर रहे और स्कूल अगर खुले तो भी स्थिति वैसी ही रहेगी।

मेरी पत्नीजी और मेरी पोती पद्मजा। लगता है किसी चिड़िया या किसी गिलहरी/गिरगिट का अवलोकन हो रहा है।

मैंने पद्मजा के स्कूल के मालिक कैलाश जी से बात की। उन्होने बताया कि इस महीने के अंत तक वे पीटीए मीटिंग बुला कर अभिभावकों से सलाह करने के बाद ही स्कूल खोलने के बारे में कुछ तय कर पायेंगे। वे अपनी ओर से तो पूरा प्रबंधन कर सकते हैं। सेनीटाइजर, मास्क, हैण्डवाश आदि की सुविधा उपलब्ध करा सकते हैं। पर बच्चे तो बच्चे ही हैं। आपस में मिलेंगे ही। एक दूसरे का पानी पी जाते हैं। एक दूसरे का भोजन भी शेयर करते हैं। वह सब कैसे देखा जा सकता है?

महीने भर में; बड़ी कक्षाओं के स्कूल खुलने और अन्य गतिविधियों पर पंद्रह अक्तूबर से ढील दिये जाने के कारण संक्रमण कैसा चलता है और अभिभावक कितना आश्वस्त महसूस करते हैं; उसी आधार पर छोटे बच्चों का स्कूल खोलने का निर्णय हो पायेगा।

मुझे यह पक्के तौर पर लग रहा है की पद्मजा का इस स्कूल सत्र का मामला खटाई में पड़ गया है। अत: मैंने तय किया कि इस साल की सभी विषयों की पूरी पढ़ाई घर पर ही कराई जाये। अभी साल/सत्र के छ महीने बचे हैं। उसको इस साल का पूरा सेलेबस घर पर पढ़ाया-पूरा किया जा सकता है।

इस निर्णय के साथ मैं, एक रिटायर्ड व्यक्ति से एक बच्चे का पूर्णकालिक अध्यापक बन गया। जब मैं, चार दशक पहले, बिट्स, पिलानी में छात्र था, तो मुझे विभागाध्यक्ष महोदय ने मेरी अभिरुचि और योग्यता को ध्यान में रखते हुये मुझे लेक्चररशिप का ऑफर दिया था। तब दिमाग भी उर्वर था और कुछ ही समय में मैं परा-स्नातक और और पीएचडी कर लेता। पर उस समय पारिवारिक दबाव और खुद की चाहत से लगा कि सरकारी अफसरी कहीं बेहतर रहेगी। अगर मैं अपने विभागाध्यक्ष जी का ऑफर स्वीकार कर लेता तो मेरी व्यवसायिक दिशा कुछ और ही होती।

अब परिस्थितियाँ मुझे पहली/दूसरी कक्षा का अध्यापक बना रही हैं। :lol:

सात साल की पद्मजा का अध्यापक बनना मुझे कठिन काम लगा। बहुत ही कठिन। एक बच्चे की मेधा और उसकी सीखने के स्तर पर उतर कर सोचना आसान काम नहीं है। केल्कुलस पढ़ाना साधारण जोड़, घटाना पढ़ाने की अपेक्षा आसान है। अपनी पत्नीजी को मैंने अपनी आशंकायें बतायीं, पर मेरी सुनी नहीं गयी। मैं “द कर्स ऑफ नॉलेज” से अभिशप्त था। मुझे पद्मजा के स्तर पर उतर कर सोचने और समझाने की क्षमता विकसित करनी थी।

डिज्नी-बायजू पैकेज

बाजयू की अर्ली लर्न पेकेज वाली कक्षा में पद्मजा

यह मेरा सौभाग्य था कि कुछ महीने पहले डिज्नी-बायजू का अर्ली लर्नर्स का पैकेज पद्मजा के लिये ले लिया था। अभी वह बायजू के टैब से, अपने हिसाब से जो मन आ रहा था, वह कर रही थी। बायजू का यह पैकेज लेने के बाद मुझे लग रहा था कि यह भारतीय (और मेरे संदर्भ में गंवई) परिवेश के लिये फिट नहीं बैठता था। इस कारण से मैंने उसके प्रयोग पर बहुत ध्यान नहीं दिया था।

पर अब मैंने पाया कि भाषा कीं समस्या के बावजूद पद्मजा मेरी अपेक्षा उन डिज्नी चरित्रों से बेहतर तालमेल से पढ़ाये गये विषय समझ रही थी। उसके वीडियो और गेम्स में आने वाले चरित्र – डीटी, जेन और जेक्सन उसे कहीं आसानी से गणित और अंग्रेजी सिखा रहे थे। मैंने उसी पैकेज से अपना टीचिंग प्रारम्भ करने की सोची।

बायजू की फेसिलिटेटर महोदया से बातचीत कर यह तय किया कि पद्मजा का अब तक का पढ़ा प्लान व्यवस्थित तरीके से एक बार पुन: रिवाइज कर लिया जाये और जो कुछ उसने नहीं पढ़ा; उसे पूरा कराया जाये। लगभग एक महीने में मैंने छ महीने के लर्निंग प्लान का बैकलॉग निपटा कर व्यवस्थित कर लिया। इस प्रक्रिया में पद्मजा को कुल चौबीस बैजेज में से बीस प्राप्त हो गये। उसकी विभिन्न स्किल्स में भी अति उत्तम (Excellent) कोटि प्राप्त हो गयी, जो पहले सामान्य स्तर की थी।

महीने भर बाद बायजू की पद्मजा के लिये नियत अधीक्षिका स्वाति प्रिया जी से चर्चा हुई तो उन्होने न केवल पद्मजा की प्रगति पर संतोष व्यक्त किया वरन यह भी कहा कि प्रगति अभूतपूर्व है।

डिज्नी/बायजू का यह टैबलेट सहित आने वाला अर्ली लर्निंग पैकेज अच्छा है; पर फिर भी मैं यह कहना चाहूंगा कि यह इण्डिया के लिये है, भारत के लिये नहीं। आवश्यकता है कि यह हिंदी या हिंगलिश में डब किया जाये और उसमें भारतीय परिस्थितियों के संदर्भ भी लिये जायें। और मुझे यह यकीन है कि बायजू की टीम में पर्याप्त इनहाउस टैलेण्ट होगी।

इस पढ़ाने की प्रक्रिया में बायजू/डिज्नी पैकेज के अलावा मैंने भी अपने इनपुट्स दिये। पद्मजा को यह अहसास कराया कि क्लास में किस प्रकार से अपनी बात को समझाया, बताया जाता है। किस प्रकार से अपने परिवेश को देखा जाता है। किस शब्द का कैसे उच्चारण किया जाता है। कैसे दुनिया को समझा जाता है। मैंने उसके लिये एक ग्लोब मंगाया और उसे विश्व के अनेक स्थानों और भूत काल में की गयी प्रमुख यात्राओं के बारे में भी जानकारी दी। पद्मजा को अब कोलम्बस, वास्कोडिगामा और झेंग हे (Zheng He) जैसे नाविकों के बारे में पता है। यह भी ज्ञात है कि उन्होने कहां से कहां तक यात्रायें की थीं।

मैंने उसे विज्ञान और हिंदी पढ़ाने की रूपरेखा भी बनाई।  

ज्वाइण्ट डायरी

मैंने एक ज्वाइण्ट डायरी बनाई, जिसमें मैंने अपने विचार लिखे और उसमें पद्मजा को भी लिखने, या चित्र बना कर बताने को कहा। मैंने लिखा कि किस तरह पद्मजा ने एक अच्छे सम्प्रेषक की तरह अपना प्रेजेण्टेशन दिया था। वह रात में सभी लाइट बुझा कर बोर्ड पर टॉर्च से फोकस कर एक डॉक्यूमेण्ट्री फिल्म की तरह समझा रही थी। सात साल की बच्ची के लिये यह कर पाना अभूतपूर्व था! कुल मिला कर “द कर्स ऑफ नॉलेज” से मैंने पार पाने की विधा तलाश ली थी और पद्मजा जो शुरुआत में मुझसे डरी सहमी रहती थी, अब मित्र बन चुकी थी। ज्वाइण्ट डायरी में उसने लिखा तो बहुत नहीं, पर उससे उसके व्यक्तित्व में परिवर्तन बहुत हुआ।

पद्मजा अपने ह्वाइट बोर्ड पर तरह तरह के कार्टून बनाती और मुझे उनपर व्याख्यान देती है!

घर का बना स्कूल

मैंने पद्मजा की स्टडी टेबल को नाम दिया बीडीबी (बाबा-दादी-बबिता) स्कूल। यह नाम उसके स्कूल – बीएलबी पब्लिक स्कूल की तर्ज पर रखा गया। अपने कमरे के बाहर यह नाम एक पन्ने पर प्रिण्ट कर बायजू के स्टिकर के साथ लगा दिया। स्कूल का समय भी नियत कर दिया। सवेरे साढ़े नौ बजे और दोपहर साढ़े तीन बजे।

प्रति दिन तीन से चार घंटे के बीच अध्ययन अध्यापन का कार्यक्रम रहता है। अभी तो पुराना बैकलॉग होने के कारण सप्ताह में सातों दिन चला स्कूल पर अब सप्ताह में एक दिन छुट्टी रहने का तय किया है हमने।

घर में मेरे बेडरूम में चलता पद्मजा का स्कूल

पद्मजा समय पर उठने लगी; समय पर क्लास के लिये उपस्थित होने लगी। अपने टैबलेट को विधिवत चार्ज करने लगी। किताबें और एक्सरसाइज बुक्स सम्भाल कर रखने लगी।

पिछले डेढ़ महीनों में घर में बहुत परिवर्तन हुये हैं। मेरा और मेरी पोती के समीकरण में व्यापक परिवर्तन हुआ है। पद्मजा में जो बदलाव है, वह तो अपनी जगह; मुझमें भी परिवर्तन हुये हैं। मुझे भी एक काम मिल गया है।

इस परिवर्तन में कीली की भूमिका डिज्नी/बायजू के अर्ली लर्नर प्रोग्राम ने निभाई है। उसने मुझे छोटे बच्चे को पढ़ाने/समझाने का एक नया नजरिया दिया है। स्वाति प्रिया जी ने भी बहुत सकारात्मक तरीके से मुझे सुना और अपने सुझाव/निर्देश दिये हैं।

फिलहाल मैं बच्चों की मानसिकता की बेहतर समझ के लिये डा. हईम सी गिनॉट (Haim C Ginott) की क्लासिक पुस्तक Between Parent and Child पढ़ रहा हूं। यही सब चलता रहा और स्वाति प्रिया जैसों के उत्साहवर्धक इनपुट्स मिले; तो शायद मेरे ब्लॉग का चरित्र बदल जाये। गंगा किनारे साइकिल पर भ्रमण करने वाले व्यक्ति की बजाय बच्चों पर सोच रखने वाले की पोस्टें आने लगें “मानसिक हलचल” पर। देखें, आगे क्या होता है!

अभी तो पद्मजा विषयक कुछ ही पोस्टें ब्लॉग पर हैं।

पद्मजा पाण्डेय मेज पर बैठ कर कार्टून बनाती और उसकी कथा मुझे सुनाती हुई।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

10 thoughts on “स्कूल बंद हैं तो घर में ही खोला एक बच्चे के लिये स्कूल

  1. यह रोचक बदलाव हुआ है। अगर ब्लॉग पर भी बदलाव आता है तो भी रोचक रहेगा। आगे आने वाली पोस्ट्स का इन्तजार रहेगा।

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  2. बहुत अच्छा लिखा आपने! वैसे मैंने बायजू के बारे में अभी तक NEGATIVE रिपोर्ट ही पढ़ी है अब तक , कि यह एक बहुत महंगा “TUTION” है! ख़ास कर बड़ी कक्षाओं के लिए इसकी कीमत डेढ़ लाख के करीब है ! मुंबई में IIT को स्वर्ग की सीढ़ी मानने वाले अभिभावक किश्तों में या कर्ज ले कर भी बायजू के LESSON PLANS खरीद रहे हैं पर स्वर्ग के निकट नहीं पहुँच पा रहे हैं !

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    1. बड़ी और छोटी कक्षाओं का अन्तर हो सकता है. छोटी कक्षा का मेरी पोती का फीडबैक तो अच्छा ही है…

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