राजेश की गुमटी और गांव के सामाजिक-आर्थिक बदलाव

मेरे गांव के लिये जो सड़क नेशनल हाईवे 19 की सर्विस रोड से निकलती है; उसके मुहाने पर दो गुमटियाँ लग गयी हैं। उनमें से एक गुमटी किलनी की है। दूसरी राजेश की। राजेश के बारे में बताया गया कि वह बम्बई रिटर्न्ड है। वहां मिठाई की दुकान पर कुशल कारीगर था। यहां कोरोना संक्रमण के पहले ही आ गया था; इसलिये उसके बम्बई से रीवर्स पलायन की वजह कुछ और होगी।

राजेश, अपनी गुमटी में समोसे बनाता हुआ

उस रोज राजेश अपनी गुमटी में जलेबियां निकाल चुका था। समोसे का मसाला बनाने के बाद उसे मैदे के कोन में भर कर तलने ही जा रहा था कि मैं वहां से गुजरा। मैंने पूछा -कितने में मिलेंगे कच्चे समोसे?

राजेश ने बताया कि तैयार समोसे छ रुपये जोड़ा बिकते हैं। कच्चे वह पांच रुपये जोड़ा दे देगा। मैंने एक दर्जन खरीदे।

राजेश ब्राह्मण है। राजेश दुबे।

इस गांव में ब्राह्मण विपन्नता में हैं। पर वे अपनी जातिगत ऐंंठ के कारण गुमटी लगाने, समोसा चाय बेचने जैसे काम में नहीं लगे हैं। महिलायें दरिद्रता में जीवन निभा रही हैं पर घर के बाहर और खेतों पर काम करने नहीं निकल रहीं। कथित नीची जाति की महिलायें और पुरुष, जो भी काम मिल रहा है, कर रहे हैं। उनके पास जमीनें नहीं हैं, फिर भी वे अपेक्षाकृत ठीक आर्थिक दशा में हैं।

मैं राजेश को इस बात के लिये अच्छा समझता हूं कि उसने इस छद्म सवर्ण बैरियर को तोड़ कर चाय-समोसे की दुकान तो खोली है।

उसकी गुमटी वाली दुकान के सामने मैंने अपनी साइकिल रोक कर कुछ न कुछ लेना प्रारम्भ किया है। कभी कच्चे समोसे, कभी जलेबी और कभी (अपनी पसंद से बनवाये) कम चीनी वाले पेड़े। अभी तीन किलो बूंदी के लड्डू भी खरीदे। मेरी पत्नीजी भी स्वीकार करती हैं कि राजेश के काम में हुनर है। उसके पास पूंजी होती और मौके पर दुकान तो अच्छी चल सकती थी। पर गांव में हाईवे से सटी गुमटी भी एक सही जगह बन सकती है भविष्य में। अगले पांच साल में, अगर विकास की प्रक्रिया अवरुद्ध नहीं हुई तो यह गांव एक क्वासी-अर्बन सेटिंग हो जायेगा। तब राजेश की यह गुमटी एक ठीकठाक मिठाई की दुकान या रेस्तरॉ का रूप ले सकती है। अगले पांच साल का अवलोकन करना रोचक होगा…

राजेश नियमित नहीं था अपनी गुमटी खोलने में। एक दिन पूछा कि गुमटी रोज क्यों नहीं खुलती? बताया कि बच्चे को फोड़ा हो गया था, उसके साथ बुखार। सो डाक्टर के पास ले जाने के कारण दुकान बंद रही।

राजेश की बिक्री कम होने का एक कारण यह भी है कि यदा कदा उसकी गुमटी बंद रहती है। दुकान नियमित न होने से ग्राहक छिटक जाते हैं।

मैं जानता हूं कि उसका बताया यह कारण न सही है और न पर्याप्त। पर उसको “मोटीवेट” करने के लिये उसकी दुकान पर रुकने और उससे सामान लेने का जो उपक्रम मैंने किया है – उसके बाद देख रहा हूं कि दुकान नियमित खुल रही है।

उसका बेटा, आदर्श भी साथ में बैठता है दुकान पर। छठवीं क्लास में पढ़ता है। आजकल स्कूल नहीं चल रहे। वह सामान तोलता है और गल्ले से पैसे का लेन देन भी जानता है। मेरे घर सामान देने भी वही आया था। मॉपेड चला लेता है।

राजेश की गुमटी। गल्ले पर बैठा उसका लड़का आदर्श। राजेश समोसे के लिये मैदा गूंथ रहा है।

दो पीढी में बहुत बदला है गांव। राजेश के बाबा या उसके पहले के लोग (छोटी जमीन की होल्डिंग के ही सही) किसान होते रहे होंगे। उसके बाद लोग महानगरों को पलायन किये। अधिकांश ड्राइवर बने – उनके पास पूरे देश में घूमने और ट्रक चलाने की कथायें हैं। ड्राइवर बनने के साथ उन्होने देश तो देखा, पर ट्रक चालक के दुर्गुण भी गांव-समाज में वे लाये। राजेश मुम्बई में मिठाई की दुकान पर रहा तो उसके पास एक वैकल्पिक काम का हुनर है। बिजनेस करने का शऊर भी है। महानगरों के कुछ ऐब भी हैं। उसके कारण जो कमाया वह गंवा चुका है। पर अब एक नयी शुरुआत की सम्भावना बन रही है। अगर वह मेहनत से काम करे, तो अगले दशक में बदलती गांव की तस्वीर का एक प्रमुख पात्र बन सकता है।

राजेश में विनम्रता भी है। वह अदब से बात करता है। वह सफल हो सकता है। और मैं चाहता हूं कि वह सफल बने। वह गांव (सवर्णों) के जुआरी-गंजेड़ी और निकम्मे नौजवानों की भीड़ से अलग अपनी जमीन और पहचान बनाये। यह आसान नहीं है। पर यह सम्भव है। सवर्णता की वर्जनाओं का सलीब ढोते इन नौजवानों के पास कुछ खोने को नहीं है; सिवाय अपनी दकियानूसी वर्जनाओं के। उन्हें अपने खोल से निकल कर, छोटे पैमाने से ही सही, एक नयी पहल करनी चाहिये।

मेरे लिये राजेश उस आर्थिक-सामाजिक परिवर्तन का सिपाही है। देखना है कि वह अपनी और अपने परिवेश की गलत आदतों और वर्जनाओं में फंस कर रह जाता है या परिवर्तन के नये आयाम तलाशता-बनाता है। एक पहल तो उसने की है।

उसकी सफलता की कामना करता हूं मैं।


Advertisement

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

One thought on “राजेश की गुमटी और गांव के सामाजिक-आर्थिक बदलाव

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: