हफ्ता भर पहले नीरज पाण्डेय जी ने फेसबुक की निम्न माइक्रो-पोस्ट पर टिप्पणी की थी; कि यहां पास के गांव उमरहाँ में उनके मामा विकास चंद्र पाण्डेय जी मधुमक्खी पालन करते हैं और उनके पास से मुझे शुद्ध शहद प्राप्त हो सकता है।
उमरहाँ गांव मेरे गांव से तीन किलोमीटर दूर है।
आज मैं अपने बेटे ज्ञानेंद्र के साथ विकास जी गांव की ओर निकला। पूछने पर लगभग हर एक व्यक्ति ने उनके घर का पता बता दिया। पर वे घर पर नहीं मिले| उनके भतीजे आशीष ने बताया कि लसमड़ा गांव में स्कूल में उन्होने अपने बी-हाईव बॉक्स रखे हैं। वहीं गये हैं। हम लोग बताये स्थान पर पंहुचे। वहीं विकास जी से मुलाकात हुई।

विकास जी लगभग पचास की उम्र के हैं। हाई स्कूल में पढ़ते थे, तब मधुमक्खी पालन के बारे में पढ़ा था। बीए पढ़ते समय एक सहपाठी के कहने पर कृषि विभाग के उनके पिता के सम्पर्क में आये और फिर मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण भी लिया। पर बीस साल तक उस ट्रेनिंग के आधार पर काम प्रारम्भ नहीं किया। पहले पौधों की नर्सरी का व्यवसाय करते थे। वह काम तो ठीक ठाक चलता था पर उसमें कुटुम्ब के अन्य सदस्यों की तुलना में उनकी प्रगति के कारण जमीन के प्रयोग को ले कर विग्रह हो गये। तब उन्होने यह तय किया कि व्यवसाय वैसा करेंगे जिसमें पुश्तैनी जमीन का प्रयोग ही न हो। उस समय उन्हें मधुमक्खी पालन का ध्यान आया। पिछले तीन साल से यह उद्द्यम कर रहे हैं।

बी-हाइव बक्सों की संख्या अभी 110-125 के आसपास है। यह बढ़ा कर 500 तक करने की सोच है विकास जी की। मधुमक्खी पालन में स्थान बदलते रहने की अनिवार्यता होती है। अभी तो वे घर से 20-25 किलोमीटर की परिधि में ही स्थान चुनते हैं। उसका ध्येय यह है कि दिन भर कार्यस्थल पर लगाने के बाद शाम को घर वापस लौट सकें।
“अच्छा? तब रात में उनकी रखवाली कौन करता होगा?”
“मधुमक्खियां स्वयम सक्षम हैं अपनी सुरक्षा करने को। मेरी तो गंध पहचानती हैं, चूंकि मैं हमेशा उनके साथ कार्यरत रहता हूं। किसी अपरिचित व्यक्ति को वे सहन नहीं करेंगी।”

मुझे विकास चंद्र जी ने मधुमक्खी के बक्सों को खोल कर दिखाया। हर बक्से में 9 लकड़ी के फ्रेम लगी जालियों की प्लेटें हैं, जिनपर मधुमक्खियां छत्ते बनाती हैं। उनको एक जूट के बोरे और उसके ऊपर बक्से के ढक्कन से ढंका गया है। मधुमक्खियों के भय से मैं बहुत पास नहीं गया – विकास जी की गंध तो वे पहचानती हैं। मेरा लिहाज तो वे करेंगी नहीं! 😀
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उन्होने बताया कि मधुमक्खियों का पालन करने वाले को स्थान बदलना होता है। मधुमक्खियां तीन से पांच किलोमीटर के दायरे में फूलों से पराग इकठ्ठा करती हैं। अभी सरसों फूलने लगेगी, तब उसका शहद बनेगा। मार्च-अप्रेल में बबूल का शहद मिलेगा। उसके स्थान भी उनके द्वारा चिन्हित हैं। उसके बाद जामुन का शहद बनायेंगी मधुमक्खियां। करंज के वन मिर्जापुर के दक्षिण (पड़री) और झारखण्ड में हैं। अगस्त के महीने में शहद मक्का के पराग से बनता है। इन जगहों को चुनना और वहां कोई निजी जमीन तलाशना एक महत्वपूर्ण काम है विकास चन्द्र जी का। “बेहतर है किसी निजी जगह को चुनना। ग्रामसभा या सरकारी जमीन पर तो शहद के सभी मालिक बन जाते हैं।”
“अलग अलग फ़ूलों के पराग से बने शहद का स्वाद, रंग और गाढ़ापन (श्यानता) अलग अलग होती है। ब्रांडेड शहद की तरह नहीं कि हर बार उनकी बोतल एक जैसी होती है। अगले महीने आप सरसों का शहद ले कर देखियेगा। वह ज्यादा गाढ़ा दिखेगा और उसके स्वाद में भी अन्तर होगा।” विकास जी ने कहा कि एक चम्मच उनका और एक चम्मच किसी प्रसिद्ध ब्राण्ड का शहद खा कर देखें तो अंतर पता चलेगा।
अलग अलग फ़ूलों के पराग से बने शहद का स्वाद, रंग और गाढ़ापन (श्यानता) अलग अलग होती है। ब्रांडेड शहद की तरह नहीं कि हर बार उनकी बोतल एक जैसी होती है।
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विकास जी ने बताया कि ये सामान्य भारतीय मधुमक्खियां नहीं हैं। ये एपिस मेलीफेरा (Apis mellifera) प्रजाति की हैं। विलायती नस्ल। नेट पर मैंने सर्च किया तो पाया कि इस प्रजाति की मधुमक्खियां साल भर में एक छत्ते में 60 किलो शहद तैयार करती हैं जब कि एपिस इण्डिका प्रजाति की सामान्यत: पायी जाने वाली मधुमक्खियां 19-20 किलो तक ही दे पाती हैं। वे 36क्विण्टल शहद उत्पादन कर पाते हैं। इसमें से पांच छ क्विण्टल तो लोकल तरीके से विक्रय हो जाता है। शेष आगरा जाता है। वहां इसे फिल्टर कर बड़ी कम्पनियों को बेचा जाता है या (अधिकांशत:) निर्यात हो जाता है।
छत्तीस क्विण्टल शहद का उत्पाद। एक कच्ची गणना से मैं अनुमान लगा लेता हूं कि गांव के रहन सहन के हिसाब से यह सम्मानजनक मध्यवर्गीय व्यवसाय है। एक रुटीन नौकरी से कहीं अच्छा विकल्प। और भविष्य में वृद्धि की सम्भावनायें भी!
मेरे बगल में ही एक सज्जन इस तरह का अनूठा काम कर रहे हैं और मुझे जानकारी नहीं थी! वह तो भला हो सोशल मीडिया का, जिसके माध्यम से गांव-घर की आसपास की व्यवसायिक गतिविधि मुझे पता चली।

अनेकानेक प्रश्न पूछने के कारण विकास जी ने अपनी जिज्ञासा व्यक्त की। “आप भी मधुमक्खी पालन करना चाहते हैं क्या?”
मैंने अपनी दिनचर्या उन्हें स्पष्ट की। अपने आसपास को निहारना-देखना और हो रहे परिवर्तनों को समझना मेरा काम रह गया है। उसमें जो अच्छा लगता है, उसके बारे में ब्लॉग पर लिख देना; यही मेरी दिनचर्या है। मैंने ऐसे ही एक घुमंतू मधुमक्खी पालक के बारे में लिखी अपनी ब्लॉग पोस्ट भी उन्हें दिखाई। शहद उत्पादन जैसा कोई व्यवसाय प्रारम्भ करने की तो सोची ही नहीं मैंने। 🙂
उन्होने बताया कि मधुमक्खियों का पालन करने वाले को स्थान बदलना होता है। मधुमक्खियां 3-5किमी के दायरे में फूलों से पराग इकठ्ठा करती हैं। अभी सरसों फूलने लगेगी, तब उसका शहद बनेगा। मार्च-अप्रेल में बबूल का शहद मिलेगा।…
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विकास जी मधुमक्खी पालन स्थल से अपने घर ले कर गये। वहां उनसे सवा किलो शहद की एक बोतल खरीदी। घर पर लोगों ने उसे चखा तो उत्कृष्ट पाया। … अब लगता है विकास पाण्डेय जी के शहद का ही घर में प्रयोग होगा और शायद शहद की खपत बढ़ भी जाये। हर महीने डाबर का शहद ऑनलाइन मंगाने की गतिविधि भी समाप्त हो जायेगी।

कृपया ब्लॉग फॉलो करने का कष्ट करें! धन्यवाद
विकास जी अगर पोस्ट या कूरियर से शहद भेजते हों तो मैं भी आर्डर कर दूंगा. कृपया बताएँ. धन्यवाद.
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उनसे पता करूंगा.
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जी कूरियर से शहद हम भेजते हैं
आप इस फोन नंबर पर संपर्क कर अन्य जानकारी प्राप्त कर सकते
8953876442
WhatsApp no.8953876442
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धन्यवाद पाण्डेय जी।
सत्येन्द्र नाथ पाण्डेय
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शहद के बारे में सटीक जानकारी आपने ट्रांसफर की उसका धन्यवाद।
कोई भी नेचुरल चीज एक शेप की नही होती यह सही है। मैंने अपने खेतों में बिना रासायनिक खाद के लौकी तुरई की तो एक सी भी कोई दो नही आई लेकिन अगर उनमें खाद और दवाई लगाई तो एक साइज की आई। और वह साफ सुथरी बिना किसी दाग के
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सर मैंने भी एक मधुमक्खी पालक मुकेश पाठक जी से शहद मंगवाया था। खाने में बहुत जी स्वादिष्ट है और महक भी लाजवाब है। एक चीज़ तो है हम इन ब्रांडेड कंपनियों पर आंख बंद करके भरोसा नही कर सकते
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पीयूष जी !
क्या आप मुकेश पाठक जी का कॉन्टैक्ट नंबर और पता दे सकते हैं ? यदि वे भी शहद भेजते हों तो ।
Dr Satyendra Nath Pandey
Phone: 99300 20692
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सर लगता है शहद में मिलावट को गंभीरता से लिया अपने। मैंने भी 2kg शहद एक मदुमक्खी पालक मुकेश पाठक जी से मंगवाया है। स्वाद और महक में जमीन आसमान का अंतर है
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