विकास चंद्र पाण्डेय के यहां शहद का स्टॉक खत्म हो गया था। वे पास के गांव उमरहां के मधुमक्खीपालक हैं। अधिकतर उनके यहां से मल्टी-फ्लोरा शहद मिलता रहा है। अब स्टॉक खत्म होने पर उन्होने कहा कि तीन चार दिन में जब धूप निकलेगी, तब वे शहद निकालेंगे और दे पायेंगे। इस बार सरसों का शहद मिलेगा।
विकास जी के शहद और डाबर-पतंजलि के शहद में बहुत अंतर है। डाबर के शहद में मिठास ज्यादा होती है और उसका स्वाद एक जैसा हमेशा रहता है। विकास जी के शहद में मिठास कम और प्राकृतिक लगती है। विभिन्न फूलों के शहद की मिठास भिन्न भिन्न होती है।
आसपास सरसों खूब फूली है। सो मधुमक्खियाँ वहीं से पराग चुन रही हैं। सरसों का शहद ज्यादा श्यान (viscous -गाढ़ा, धीरे बहने वाला) होता है। ठण्ड में जम जाता है। चम्मच से जैम की तरह काट कर खाना पड़ता है। मैंने सरसों के शहद में अनिच्छा दिखाई तो विकास जी ने प्रस्ताव रखा कि वे फिल्टर कर शहद दे देंगे। फिल्टर किये शहद की श्यानता कम हो जाती है। वह अधिक तरल हो जाता है।

फिल्टर करते कैसे हैं? पूछने पर विकास जी ने बताया कि एक बड़े बर्तन में पानी खौलाया जाता है। उसमें निकाले हुये शहद का डिब्बा डाल कर गर्माया जाता है। शहद को सीधे आंच नहीं दिखाई जाती।
रात भर उसी पानी में वह डिब्बा या कनस्तर छोड़ दिया जाता है। अगले दिन शहद को छान लिया जाता है।
विकास जी के यहां शहद लेने गया तो वहां मधुमक्खी के छत्ते के डिब्बे/बक्से बनाने का काम चल रहा था। डिब्बों में रखे जाने वाले फ्रेम बने रखे थे। एक नौजवान खटिया पर बैठा उनपर तार से जाली बुन रहा था। विकास जी ने बताया कि उनके पास पहले अस्सी डिब्बे थे जो अब बढ़ कर सवा सौ हो गये हैं। व्यवसाय बढ़ रहा है। पर मेरे ख्याल से, व्यवसाय बढ़ने में और तेजी आनी चाहिये।
मैं विकास जी को सलाह देता हूं कि शहद की आकर्षक पैकेजिंग और ऑनलाइन बिक्री की ओर ध्यान दें। मार्केट उसी से ही बढ़ेगा। उन्हें किसी कुरियर कम्पनी से भी तालमेल बिठाना चाहिये। उनके कुछ मित्र भी मधुमक्खी पालन का काम कर रहे हैं। अगर वे सब मिल कर ज्वाइण्ट मार्केटिंग का उद्यम करें तो बड़ा बाजार और बड़ा मुनाफा सम्भव है।
घर पर शहद का उपयोग मेरी पत्नीजी करती हैं। सवेरे निम्बू-शहद-गुनगुना पानी का सेवन करती हैं। उन्होने बताया कि विकास जी के शहद और डाबर-पतंजलि के शहद में बहुत अंतर है। डाबर के शहद में मिठास ज्यादा होती है और उसका स्वाद एक जैसा हमेशा रहता है। विकास जी के शहद में मिठास कम और प्राकृतिक लगती है। मल्टी फ्लोरा, शीशम या सरसों के शहद की मिठास अलग अलग मालुम पड़ती है। कुछ उस तरह कि अमरूद, गाजर या पपीता खाने पर मीठे लगते हैं पर तीनों की मिठास बिल्कुल अलग होती है। इस शहद के सेवन से लगता है कि कुछ सेवन हो रहा है जो प्राकृतिक है, वह वही है जो मधुमक्खियों का बनाया है। 🐝

शहद का ग्लाइसेमिक इण्डेक्स 58 बताया गया है। गेहूं का 54 और गुड़ का 64-70 के बीच होता है। मैं मधुमेह वाले परहेज के हिसाब से चीनी का प्रयोग तो नहीं करता पर यदा कदा – और सर्दी के मौसम में – गुड़ या गुड़ की पट्टी का प्रयोग कर लेता हूं। उस हिसाब से देखा जाये तो गुड़ की बजाय प्राकृतिक शहद का प्रयोग बेहतर है। रात में चुरा कर आधी भेली गुड़ खाने की बजाय एक चम्मच शहद चाट लेना एथिक्स के कोण से उतना ही बुरा होगा पर स्वास्थ्य के हिसाब से कहीं बेहतर होगा। 😆
आशा करता हूं कि विकास चंद्र पाण्डेय जी का मधुमक्खी पालन और बढ़ेगा और समृद्ध होगा। वैसे ही साइकिल से मैं उनके घर जाता रहूंगा और उनसे मुलाकात होती रहेगी – आगे के दशकों में! हर महीने दो महीने में एक बार! 🙂
विकास जी को मैंने पिछले दो-तीन मर्तबा फोन से और व्हाट्सएप संदेश देकर शहद भेजने के लिए कहा परंतु वह कोरियर के जरिए भेजने में शायद असमर्थ हैं उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
तो ऐसा लगता है कि उन्हें अपना व्यवसाय बढ़ाने में कोई फिकर नहीं है।
अगली बार आपसे मुलाकात हो तो कम से कम उन्हें तो कहिए कि जो आपके ब्लॉग-प्रशंसक हैं उनको तो शहद भेज दें। धन्यवाद।
नहीं तो आप ही उनसे शहद लेकर कोरियर से हमें भेजिए कम से कम इतना तो करना पड़ेगा अपने ब्लॉग के प्रशंसकों के लिए😊
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इस बार मैंने उन्हें आपके बारे में और आपकी टिप्पणी के बारे में कहा था। उन्होने कहा कि कुरियर वाला बहुत पैसे मांग रहा था…
उनकी कांच की बोतल में भेजना रिस्क का काम है। प्लास्टिक की बोतल/जार खोजना होगा। मैं जेहन में रखूंगा आपकी यह बात। देखें, कुछ कर पाता हूं या नहीं।
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उनसे कहिए कि प्रीमियम और असली सामान के लिए लोग कई गुना पैसे दे सकते हैं। शहद पर्लपेट जैसे पानी के बोतल में भेजी जा सकती है। बहरहाल, बहुत-2 धन्यवाद।
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